वो ठंडी हवाओं का जिस्म में सिहरन पैदा करना
वो गुनगुनी धुप की हलकी हलकी थपकियाँ देना
वो देर सुबह आँगन में बैठ किताबों के बीच खो जाना
वो लहकते फूल अमलतास के सिहरते से टूट कर गिर जाना.
जाड़े के उन ठंढे दिनों की गर्मी आज भी साथ है मेरे,
बस वो दिन दूर हो गए है मुझसे
शायद मै दूर हो गया हूँ उन ठंढे दिनों के गर्म अहसास से.
- अमितेश
वो गुनगुनी धुप की हलकी हलकी थपकियाँ देना
वो देर सुबह आँगन में बैठ किताबों के बीच खो जाना
वो लहकते फूल अमलतास के सिहरते से टूट कर गिर जाना.
जाड़े के उन ठंढे दिनों की गर्मी आज भी साथ है मेरे,
बस वो दिन दूर हो गए है मुझसे
शायद मै दूर हो गया हूँ उन ठंढे दिनों के गर्म अहसास से.
- अमितेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें