सुरज
जब सात घोड़ों पे सवार
जहाँ को रोशन करता है
और मैं
उस रोशनी मे
अपने आप को धुला सा महसूस करता हूँ
तब एहसास होता है
मेरे होने का.
जब मेरी परछाइयाँ यु ही
मेरा अनुशरण करती हैं
अपनी काली काया ले कर,
एहसास होता है मेरे भीतर छुपे
मेरे मैं के होने का.
जब
अपनी उम्मीदों में,
बादल के खुरदरे सीने पर
अपने पैरों के अनदिखे निशान छोड़ता हूँ
आभास होता है
जहाँ के ज़र्रे ज़र्रे मे मैं हूँ,
ज़र्रा ज़र्रा ज़हाँ का
मुझमे आत्मसात है.
शायद मैं न लिखा जाऊं
इतिहास के सुनहरे पन्नों पर
फिर भी
हाँ वज़ूद है मेरा इस जहां में कहीं.
मैं हूँ इस जहां में कहीं
अपनी एक छोटी-सी दुनियां को समेटे
अपने आप में कहीं.
हाँ मेरा भी वज़ूद है
इस जहाँ में कहीं.
-अमितेश
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