कभी खुले आस्मां में
परों को खोल कर उड़ने की चाहत
फिर शाम ढले अपनी नीड़ में लौट जाना.
कभी चाँद को देख कर
उसकी तरह चमकने की चाहत
फिर यूँ ही अपने कहे पे सकुचा जाना.
कभी हर बंद डब्बे के राज़ तक पहुचना
कभी अनमने से ख़ुद डब्बे में बंद हो जाना.
ज़िन्दगी के गूढ़ रहस्य से
मुझे रू-ब-रू कराना
कभी ज़िन्दगी से भी जटिल बन जाना.
कभी पूरी कायनात
अपनी हथेली पे समेट लेना
कभी खुली हथेली आस्मां की ओर कर सो जाना.
कभी भरी नज़रों से एक टक देखना
कभी मेरी नज़रों से मुझे ही छुपाना.
कभी हौले से मेरे क़रीब आना
कभी चुपके से मुझसे दूर चले जाना.
कई दफा देखा है तुझे अपने आप के भीतर
कई दफा देखा है मैंने
अपने आप को तेरे भीतर
कई दफा देखा है तुझे
मुझमे सिमटते हुए
कभी मेरी ज़िन्दगी से रेत सी फिसलते हुए.
तुम मरीचिका हो
मेरे जीवन के तपते रेगिस्तान की
जो मुझमे और दूर जाने का ज़ज्बा भरती है.
शायद मैं पा न सकूँ तुमको
पर तुम्हे पाने की लालसा
बनी रहेगी जीवन भर मुझमे
हमेशा.
शायद मेरी साँसों के
आखरी कतरे तक
- अमितेश
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