बादल का वो टुकड़ा जो मुँह चिढ़ा गया
सूरज को ढक कर उसकी अगन बढ़ा गया
वो था बड़ा ही नटखट, वो था ज़रा मस्तमौला
देख कर उसकी चंचलता, सूरज का ताप था खौला
माँ ने उससे कहा था सूरज से दूर ही रहना
था वो बड़ा ही शरारती, कहाँ मानता माँ का कहना
चाह थी उसकी ढक ले सूरज की वो ऊर्जा
इस बात से ही थी सूरज को बादल से ईर्ष्या
गर्व नन्हे बादल का अभिमान में था बदला
सूरज की चाह थी की मिले सबक उसे तगड़ा
भाप का बना वो बादल भाप बन बिखर गया
सूरज ने दिखाई जब ताकत, बादल न था वहां अब
वो नन्हा वीर बादल यूँ ही टुकड़ों में बिखर गया था
मिल फिर से वो अपनों में, वो सब का हो गया था
एक दिन फिर एक नन्हा बादल अपनों से बिछड़ गया
एक और नन्हा बादल फिर मुँह चिढ़ा रहा था
सूरज को ढक कर उसकी अगन बढ़ा रहा था
- अमितेश
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