जब जीवन दीप धूमिल हो जाए
विदित पथ भी भ्रमित हो जाए
जब पथ पथरीली प्रतिक्षण बन जाए
तू फैला पंख अपने उड़ जाना
नभ के उन्मुक्त नभचर बन जाना।
जब रिश्ते भी प्रतिघात करे
और अपने भी बैरी बन जाए
उन बोझिल से पलछिन में
कोई भी तेरे पास ना आए
सशक्त तू पाषाण बन जाना
दृढ हो पथ अपने आसान बनाना।
जब जीवन की दुर्गम राहों पर
क्लिष्ट परिस्थितियाँ अक्लांत करे
जब दृढ़ता तेरी खंडित हो और
अनिश्चितता के बादल घिर आए
शांत समीर सा तू बन जाना
पल के प्रवाह को विनियमित कर जाना।
जब तेरा आत्मविश्वास जाने लगे
और मन कई कुंठाओं से भर जाए
जब हर कोई तेरा साथ छोड़े
जब सब तुझसे मुँह अपना मोड़े
रुकना तू मत, झुकना तू मत
बढ़ते जाना एकांकी बन कर।
तू मेरा है तू क्रांतिवान
तू सावन की बूंदों सा निर्मल
तू है पौर्णिमा के चाँद समान
तू सूरज है, तू है तारा
तू जान से मेरे है प्यारा
तू बढ़ता जा, तू लड़ता जा
पाएगा एक दिन गंतव्य महान।
- अमितेश