छोड़ के सारे साथी संगी
चांदनी वो कई रातें रंगी
वो सारी अनकही बतकही
बेबात की वो सब हंसी ठिठोली
यहीं छोड़ अब हम चलते हैं।
वो छत की अनगिनत रातें
वो रातों से लम्बी बातें
वो बातों से बने बतंगड़
वो महफ़िल के अंत भयंकर
यहीं छोड़ अब हम चलते हैं।
चौकी - चौपाल के कितने किस्से
कुछ तेरे कुछ मेरे हिस्से
जन्मदिन के वो सारे उत्सव
उन ऋषभ - ज्ञान से होते पूर्णोत्सव
यहीं छोड़ अब हम चलते हैं।
लिट्टी मदिरा की वो विशाल सी महफ़िल
अंकित यादें कई मानस पटल पर
कई भावों का अंकुर हो जाना
गौतम सा आत्मबोध पा जाना
यहीं छोड़ अब हम चलते हैं।
रातों का हिंडोल हो जाना
अनुराग भरे वो मॉरिश कमरे
मनोज की मधुशाला कारें
धनञ्जय की पथरीली सपाटें
यहीं छोड़ अब हम चलते हैं।
शाम ढले कैरम के बहाने
कभी निर्मल मौसम के जानें
कभी यूँही बेवजह मिल जाना
जुगाड़ यूँहीं हिपबार से हो जाना
यहीं छोड़ अब हम चलते हैं।
लौट के एक दिन फिर आएंगे
फिर इस महफ़िल को सजायेंगे
फिर होगा रोज बम बम भोले
फिर इस दौर को जी जायेंगे
लौट के यारों फिर आएंगे।
- अमितेश