जीवन के कुछ निराश लम्हे
और आशा की एक धुंधली किरण सी तुम,
बोझिल होते प़ल में मुस्कराना सिखाती सी तुम.
जब अपनी आँखों में जम आयी पानी की महीन परत से
पार पाना मुश्किल हो जाता है,
तुम्हारा एक स्पर्श उस प़ल को अप्रतिम बना जाता है.
प्रिया,
तुम ही हो मेरे जीवन की प्रथम अनुभूति
और
आखरी स्पर्श.
- अमितेश
और आशा की एक धुंधली किरण सी तुम,
बोझिल होते प़ल में मुस्कराना सिखाती सी तुम.
जब अपनी आँखों में जम आयी पानी की महीन परत से
पार पाना मुश्किल हो जाता है,
तुम्हारा एक स्पर्श उस प़ल को अप्रतिम बना जाता है.
प्रिया,
तुम ही हो मेरे जीवन की प्रथम अनुभूति
और
आखरी स्पर्श.
- अमितेश
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