आओ ना !
कुछ वक़्त जाया करें एक दूजे संग
क्या पता कब वक़्त हो जाये बेरंग।
आओ ना !
हाथों में हाथ डाले कुछ राहें नापे
एक दूजे की मुस्कान खुद में जमा करें
वो तेरी बालियों को आँखों में भरें
तुम मेरी बुराइयों को नज़रअंदाज करो
हम तुम्हारी अच्छाइयाँ रख लें।
आओ ना !
खो जाएं एक दूजे संग
इन पहाड़ी झरनों, चस्मों में
कि कुछ सदी ढूंढ ना पाए ये जहाँ हमें
डूब अपनी प्यार की गहराइयों में
आओ ना, कुछ और ऊँचाइयाँ गढ़ ले।
आओ ना !
कुछ रीतियों के पार हो जाएं
कुछ कृतियाँ हम गढ़ लें
कुछ जमीं हम तलाशें
कुछ आसमां हम अपनी फैलाएं
आओ ना !
आओ ना !
कुछ खामोश आखों से बाते बुने
कुछ अपने नए किस्से बना जाएं
कुछ और भी चर्चा में आ जाएं
कुछ और हसीं तुम हो जाओ
कुछ रूमानी से हम हो जाएं।
आओ ना !
ये वक़्त हमें जो आज मिला
इसको ना यूं बरबाद करें
होंगे कई शिकायतें, शिकवे भी
उसको हम आज बिसार चले
जाने क्या नियति में है लिखा
उसके होने का ना इंतज़ार करे
आँखों के खुले होने तक
प्रीत का अपने इज़हार करें।
आओ ना !
- अमितेश
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