दूर अभ्र तले
एक चिराग रख आया
हमारे नाम का
तेरी आँखों की चमक चुरा कर
कि उसकी दीप्ती
हमारे जीवन को प्रकाशित रखे अनंत तक
और तुम मस्ती में
आंखे मटका, चिराग से खेले जा रहे हो।
वो जो गेसुओं को बिखेर
तुमने सूरज को धता बताया था
मैं अपने नक्षर से पार पा
तुम्हारे दीदार को तरसा था
तुमने आंचल बिछा सांझ कर डाला था
उस एक पल में
और मैं बावरा बना
तुम्हारे तिलस्म की गवाही दिए जा रहा था।
तुम्हारी मुस्कान मोतियों सी फैल समुन्दर में
एक चमक फैलाए थी,
चमक जो फैल कर
उलझन बढ़ाए थी
तुमने अपनी मुस्कान हल्की कर
ज्वार बढ़ाया था उस एक क्षण में
और मैं अपने ज्वार समेटे था अंतर्मन में
साहिल पे बैठ कर।
तुम परी हो मेरे ख्वाबों की
बेपंख परवाज़ भराती हो
मेरी कल्पनाओं को,
कई गगन घूम आता हूँ
तुम्हारे चेहरे को देख कर
और तुम खिलखिला कर
मुझे खींच लाती हो सततता में
उस स्वप्निली जहाँ से।
तेरी आँखों की चमक
वो जुल्फों की खुशबू
वो आँचल जो तारों को सितारों सा समेटे है
वो देवलोक सी पवित्र मुस्कान
वो तेरे चेहरे पे फैली नीलाभ सी ख़ुशी
खुद में भर इन्हे मैं
ब्रह्मांड का बादशाह बना बैठा हूँ
तुम अभी भी मंद - मंद मुस्काए जा रही हो ये देख कर।
-अमितेश
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