रविवार, 6 जून 2021

इंद्रधनुष

सुनो 
तुम जो आँखों में काजल लगाती हो ना 
वो मेरी शाम को और रूमानी कर जाती है 
जो तुम्हारी साँसों की खुशबु है 
वो फ़िज़ा को रूहानी कर जाती है 

तुम जो यूं छलकती सी चलती हो 
वो मुझे असंयमित कर जाती है 
तुम्हारी उन पाज़ेब की रुनझुन रुनझुन 
सूने से मेरे जीवन में सरगम छेड़ जाती है 

तेरा दुपट्टा जो बलखा कर उड़ता है 
और जो तुम उन्हें झट से पकड़ती हो 
वो उड़कर मेरे अंतर्मन में तरंग फैला जाती है 
जिन्हे पकड़ में आ जाता हूँ तुम्हारे तीरे 

तुम जो यूं मुस्कुराती हो 
दिन को मेरे और रोशन कर जाती हो 
तेरी आँखों की चमक जो फैलती है 
जहाँ मेरा तिलस्म से भर जाता है 

तुम जादू हो मेरे जीवन की 
जो हर पल नए रंग फैलाती है जीवन में 
मैं सराबोर उन रंगों में 
इंद्रधनुष बन निकल जाता हूँ 


- अमितेश 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें