मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

आओ थोड़ा ग़म मना लें

आओ थोड़ा ग़म मना लें
थोड़े आँसू और बहा लें

बसंत की आस को छोड़ कर थोड़ा
पतझड़ से ही दिल बहला लें
आओ थोड़ा ग़म मना लें
थोड़े आँसू और बहा लें।

जब - जब सुरज वादा कर के
रात की कालिमा बिखेर है जाता
कोयल कूक को छोड़ कर अपने
विरह गीत है गाता जाता
क्यों ना ख़ुशी के पल को भूल हम
थोड़ा ही सही, ग़म मना ले
थोड़े आँसू और बहा लें।

दिल पे हल्की सी दस्तक दे
ख़ुशियाँ जब हैं बिसर सी जाती
याद पुराने लम्हों को कर जब
हँसी के मोती बिखर से जाते
हम क्यों परवाह में ख़ुशियों के
बैठे बैठे दिल जलाएं
आओ थोड़ा ग़म मना लें
थोड़े आँसू और बहा लें।

ख़ुशी के पल की ख़ुशियों को
ग़म के पल हैं और बढ़ाते
फ़िर क्यों हम ग़म को ना मनाएं
आओ थोड़ा  ग़म मनाएं
थोड़ा  आँसू  और बहायें।


- अमितेश

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

सपनीली सफ़ेद आँखें

सपनीली सफ़ेद आँखें

झांकता हूँ जब इनमे
महसूस होती है मुझे
तुम्हारी  रक्त और धडकनों की रवानी
तुम्हारी वो सपनीली सफ़ेद आँखें।

एक दुनिया है बसी
तुम्हारी सपनीली सफ़ेद आँखों में,
अक्सर बहता सा जाता हूँ इनमे
जब जब उतरता हूँ मैं
तुम्हारी आँखों के जरिये
उस सपनीली सी दुनिया में।

जब जब खो जाना लुभाता है
तुम्हारी उन सपनीली सफ़ेद आँखों में
तुम छू कर मुझे
तोड़ देती हो मेरी तंद्र
और दिखाती हो अपने हृदय का रास्ता
अपनी सपनीली आँखों के बाबस्ता।

सपनीली सफ़ेद आँखें

तुम्हारी आँखों के भंवर में
जब डूब जाना नियति सी बनती जाती है,
मेरा हाथ पकड़ कर
जीवनदान देती हो तुम
और मैं शापित सा महसूस करता हूँ
इस जीवनदान को पा कर।

बसाना चाहता हूँ मैं
अपना छोटा सा जहाँ
उन सपनीली सफ़ेद आँखों की दुनिया में,
परवाह किये बगैर
इस दुनिया की कंटीली व्यंगात्मक आँखों का।
धन्य कर दो मुझे अपनी आँखों के एक स्पर्श से
कि आजन्म मैं खोया रहूँ
तुम्हारी उन सपनीली सफ़ेद आँखों में।

- अमितेश