शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

याद तुम्हारी

जब गुलमोहर पुरवाई में मदमाता है
जब जिस्म उस ठंडक में सिहर जाता है
जब शरद की धूप चेहरे को सहलाता है
तुम्हारी याद सताती है

जब चाँद अपनी शबाब पे इठलाता है
जब रातें वक़्त के साथ गहराता है
जब अरमां क्षितिज को छु जाता है
तुम्हारी याद सताती है

जब भीड़ में भी दिल अकेला पाता है
जब हसीं सपनो से मन भरमाता है
जब नींद न सोने की हद तक सताता है
तुम्हारी याद सताती है

जब हसीं भी आँखों में नमी भर जाता है
जब भावनाएं शब्द न गढ़ पाता है
जब चेतना खुमारी से निश्चेतन हो जाता है
तुम्हारी याद सताती है

- अमितेश

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