शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

मनोरथ

जो छूना है आसमान तो 

तू पंख बदल हौसला नहीं 

पाना फतह जब जहां पर 

तू शस्त्र बदल फैसला नहीं। 


आएंगी रुकावटें राहों में  कई

कुछ पहचानी सी कुछ होंगी नई 

पहुंचना हो फिर भी नियत तक जो 

तू राह बदल गंतव्य नहीं। 


कुछ कर गुजरना हो ध्येय जब 

कुछ भी ना लगे आसान पर 

हिम्मत पर फिर भी हार मत 

तू प्रयत्न बदल मनोरथ नहीं। 


तू सशक्त है तू लौह पुरुष 

नीयत भी तुझमे पुरुषार्थ भी 

तू ही अद्वैत तू पार्थ भी 

तू अजेय है तू अपराजिता। 


गांडीव उठा प्रत्यंचा चढ़ा 

टंकार से तू धनता फैला 

तू बाण चढ़ा तू लक्ष्य गढ़ 

और भेद दे तू लक्षित निमित्त। 


- अमितेश 

शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

समझे ना

तुममे वो जज़्बात नहीं अब, समझे ना 

तेरी मुस्कान में वो अहसास नहीं अब, समझे ना। 

जो बातें कुछ भोली लगती थी हर पल को

उन बातों में अब बात नहीं है, समझे ना। 

विहंगों की चहक भी मीठी लगती थी तब मुझको  

उन में अब वो मिठास नहीं है, समझे ना। 

हाथ पकड़ जब रोका करती थी तुम मुझको   

उन मनुहार में वो अनुराग नहीं अब, समझे ना। 

भोर के सूरज में तुमको देखा करते थे 

उन सुबहों में वो प्रकाश नहीं अब, समझे ना। 

तेरा हँसना कभी संगीत हुआ करता मेरा 

उन संगीतों में लय ताल नहीं अब समझे ना। 

जुल्फ़ें जो तेरी बादल बन घिर जाया करती थी 

उन मेघों में वो आद्र नहीं अब समझे ना। 

जब चाहा था तब साथ ना मिल पाया तेरा 

इस जीवन में कोई आस नहीं अब समझे ना। 

मेरे प्रेम प्रणय की सीमा अपरिमित थी उन दिनों 

अब ना कोई ध्येय ना उद्द्येश बची है समझे ना।  


- अमितेश