रविवार, 30 जनवरी 2011

जीवन की दौड़ में भागते भागते

जीवन की दौड़ में भागते भागते
अपना बचपन कहा छोड़ आया
याद नहीं.

अमरुद के पेड़ पर एक शर्त पे चढ़ जाना
इमलियों की बेरिओं पे अचूक निशाना लगाना
मटर की छेमियों की तलाश में दर-ब-दर भटकना
उन तिलस्मी तितलियों के पीछे भागते भागते
अपना मासूम बचपन कहा छोड़ आया
याद नहीं.

मोहल्ले की लड़कियों के साथ
इमली के दानों और चूड़ी के टुकड़ों को इकट्ठा करना
उनकी गुड़ियों की शादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना
और शादी के बाद झूठ मुठ का खाने की आवाज़ निकालना
गुड्डे गुड़ियों की शादी में नाचते - कूदते
अपना बेवाक बचपन कहा छोड़ आया
याद नहीं.

गली के हर कुत्ते को एक नाम देना
गिल्ली - डंडे के खेल में हमेशा हार जाना
गेंद और बल्ले की जिद में घंटों खाना छोड़ देना
दोस्तों की एक आवाज़ पर नंगे पैर ही निकल जाना
विकेटों के बीच दौड़ते - दौड़ते
अपना वो बिंदास बचपन कहा छोड़ आया
याद नहीं.

जीवन की दौड़ में भागते भागते

अपना बचपन कहा छोड़ आया
याद नहीं.


-अमितेश

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