रविवार, 13 अक्तूबर 2013

To Travel Across or Being Flown in Ganga


River Ganga has always fascinated me. I have a hidden dream of traveling across the 2500 km length of the holy river and capture the cultural diversity of India. This always surprises me how people, culture, tradition changes with every miles across the river but the Holy river remains unchanged, flowing with her serenity, washing off all what is coming her ways and leaves behind the prosperity. I have this opportunity of staying near to this river for most of my life so far. At times had even joined "Ganga Bachao Movement" in Patna to pay my tribute to the River. Have flown my grief and paap into the River, passed my time by throwing pebbles in River. Ganga always had gave me that independence and had never frown on me.
And this time I am again at most sacred part of this River, Varanasi. The place where it is said if some one die and get cremated at her bank definitely gets Nirvana. A place where Holy Ganga is so sacred that it helps creatures leave the cycle of reincarnation and reach the absolute Brahma. It was such a feeling that I was spellbound while rowing the boat on the Holy River. I was in trans and everything around me was appearing meaningless. This an hour long rowing had again surfaced my feelings of traveling across the length of this Holy River and know her well.

A day will definitely come when I'll fulfill my this hidden wish of traveling through the length of the Holy River. Else would prefer being flown in the Holy River as ashes, if not alive, can travel across the river after dying. 

रविवार, 11 अगस्त 2013

बस तुम हो और ये तन्हाईयाँ हैं

बस तुम हो और ये तन्हाईयाँ हैं

ना कोई राह अब ना मंज़िल है पता
सुनी सी आँखों में सुहानी यादें है बसा
तेरे होने का अब आभास भर है बचा
बस तुम हो और ये तन्हाईयाँ हैं

तलाशता हूँ बसंत अपने जीवन के पतझड़ में
शायद सूरज फिर चमकेगा
जो कल गया था गंगा की इक छोर पे डुबकी लगाने
फिर सुबह, सुबह सी चमकीली होगी
शायद फिर उन आड़ी तिरछी पगडंडियों की
सोंधी खुशबु महकेगी
फिर गुलाब अपनी शबाब पे होगा
फिर छुई मुई सी ज़िन्दगी
अपनी खोई तंद्रा पा लेगी

खुली आँखें भी अब इन सपनों पे शक़ करते हैं
हाँ जानता हूँ मैं ये की
तेरे होने का अब आभास भर है बचा
बस तुम हो और ये तन्हाईयाँ हैं.


- अमितेश 

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

ज़िन्दगी चलो फिर दोस्ती कर लें

ज़िन्दगी चलो फिर दोस्ती कर लें
रूबरू हो एक दूजे से चलो कुछ और मस्ती कर लें
ज़िन्दगी चलो फिर दोस्ती कर लें

तेरे चौखट पे बैठे कब तक
तेरे ख़त्म होने का इंतज़ार करें
तेरी दरख्तों पे अटकी मेरी चंद साँसें उतार
इस शरीर में फिर तुम्हें भर लें
ज़िन्दगी चलो फिर दोस्ती कर लें.

कोरे कागज़ सी ज़िन्दगी पर
रात की स्याही से कुछ और नज़्में बुन लें
सांझ की धूमिल कालिमा को पोंछ
दिन के उजाले से तुम्हें थोड़ा और रोशन कर लें
ज़िन्दगी चलो फिर दोस्ती कर लें

आँखों में बसे सैलाब को दरकिनार कर
अश्कों से सुख के पौधे सींच
उन में कुछ और हरयाली भर लें
नयनों में धुंधलाते से पल को समेट
अश्कों के मोती से खज़ाने भर लें

ज़िन्दगी चलो फिर दोस्ती कर लें


- अमितेश 

वक़्त गुजार ले संग संग

सारे ग़म बिसार दे ज़िन्दगी के संग संग
थोड़ा और वक़्त गुजार लें संग संग.

उन लम्हों को जी लें फिर जरा
जो जिये ही ना गए हैं
उन तारों को गिन लें फिर जरा
जो गिने ही ना गए हैं.
इन अप्रतिम लम्हों के बहाने ही सही
थोड़ा और वक़्त गुजार लें संग संग

तेरी आँखों में जमी सुर्खी को
फैला के आस्मां पे फिर गोधुली कर दें
तेरे बिखरे से काजल से
रात में थोड़ा  और कालिख भर दें
उन बिसरी हुई मुस्कान को तेरे समेट के
मुरझाई सी ज़िन्दगी में थोड़ा और ख़ुशी भर दें
इन अप्रतिम लम्हों के बहाने ही सही
थोड़ा और वक़्त गुजार लें संग संग

धुमिल से होते हमारे पदचिन्हों को संभाले हुए
उखड़ती हुई हमारी साँसों को सहेजे हुए
चलो ज़िन्दगी में कुछ और भी ज़िन्दगी भर लें
इन अप्रतिम लम्हों के बहाने ही सही
थोड़ा और वक़्त गुजार लें संग संग

क्या पता ये लम्हें गुजार न पाएं दुबारा
शायद इंतज़ार में पथरा जाएँ
आँखें हमारी फिर जीने को
इन दु:स्वप्नों में ही सही
थोड़ा  और वक़्त गुजार लें संग संग


-अमितेश


शनिवार, 1 जून 2013

अविरल लम्हें

धूप में धुले वो  सुहाने दिन
और चांदनी से नहाई रातें
जब तेरी यादों की चादर ओढ़े
तेरी ख़्वाबों में खोया रहता था
जब सुबह की हवाएं सहला कर मुझे
उस अप्रतिम निंद्रा से खींच लाती
और मैं अनमना सा निकल आता
उन परीकथाओं की निंद्रा से।

जब तेरी नज़र की एक दस्तक
मेरे ह्रदय को चीर जाती
और तेरी आवाज की खनक
कई सरगम छेड़ जाती मेरे जीवन में
मैं मंत्रमुग्ध सा स्थिर हो जाता
जब अपलक निहारता रहता तुम्हे
तुम सकुचाई - सी निःशब्द हो
चूड़ियां घुमाती अपने हाथों में।

तेरी चमकीली हँसी से जब
नक्षत्र अपनी राह बनाते
बस कर तुम्हारी उन आँखों में
मैं जब कई लोक घूम आता
तेरी आँखों के बावस्ता
जब तुम मेरी राहें भर देती
अपनी पलकें बिछा कर
की कोई दू:स्वप्न ना चुभ जाए
मेरी पावों में।

काश
की ख़त्म ना हो ये अविरल लम्हें
आजन्म मेरे जीवन से।


-अमितेश 

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

सुहाने दिन

 वो दिन जाने कहाँ खो गए
लड़कपन के वो प्यारे दिन
जब गर्मी की भरी दोपहरी
जीवन के गूढ़ रहस्यों का आभास होता
छेमी के दानों को पा कर
जैसे किसी खज़ाने को पा लेने का एहसास होता

जब डाकिया घर के दरवाज़े खड़का कर
चिट्ठी आयी है की आवाज़ लगता था
जब वो पंद्रह पैसे का पोस्टकार्ड
अपने अपनों के और क़रीब ले जाया करता था

जब कैरी की सौंधी खुशबू, हममे एक ऊर्जा भर जाता था
जब शाम ढले पापा के घर आने पर मन सांत्वना पता था

वो दिन जाने कहाँ खो गए
जब माँ के साथ बैठ कर चाय की चुस्कियां लिया करते थे
उसकी बातों से कभी सीखते कभी हंस दिया करते थे

जब होमवर्क की याद बड़ा सताती थी
"गुलमोहर इंग्लिश" की किताब खोलते ही
बिल्लू - पिंकी की कॉमिक्स याद आती थी

जब गेंद की ज़िद में
घंटो रूठ कर बैठ जाया करते थे
और माँ जब मनाने की ज़द्दोज़हद में
अपने हाथों से निवाला खिलाया करती थी

वो दिन जाने कहाँ खो गए
जब शाम ढले दोस्तों से लड़ कर आते थे
फिर अगली सुबह उससे नहीं मिल पाने पर
खुद पे गुस्सा कर जाया करते थे

जब लुडो को फैला कर ६ आने की प्रार्थना करते थे
और हार जाने पर खेल छोड़ कर भाग जाया करते थे

वो दिन जाने कहाँ खो गए
जब रोज़ दर्पण के के सामने खड़े हो कर मुह  बनाया करते
और कमरे में अचानक किसी के आ जाने पर
सरमाया सकुचाया करते

जब दोस्तों संग इमली के दाने खा
मुहँ आड़ी तिरछी बनाया करते
फिर उसके बीज़ को मुहँ से दूर फेक पाने के खेल में
जीत जाया करते

वो सुहाने दिन लड़कपन के
जाने कहाँ खो गए हैं
अब तो हम मानो खुद से ही बहुत दूर हो गए हैं।


-अमितेश






हम ज़िंदा हैं

जहाँ के ढेरो थपेड़े हैं
कई मर्यादाओं के घेरे हैं
अनजाने  से जीवन के कई फेरे हैं
कुछ अपेक्षाएं जीवन की कुछ मेरे हैं
डरे डरे  ही सही
पर हां हम ज़िंदा हैं।

सपने कई अधूरे से हैं पड़े हुए
अपेक्षाएं हैं कई यूँ ही धरे हुए
दिल में टूटी उम्मीदों के टुकड़े कई हैं भरे हुए
अपनी ही महत्वाकांक्षाओं से हम है डरे हुए
जीत जाने के ख्वाबों में ही सही
पर हां हम ज़िंदा हैं।

एक छोटी सी ज़िन्दगी और कई जिंदगानी है
हर पल में भरी अनगिनत कहानी है
आँखें नम और होठों पे मुस्कराती रवानी है
कई बीते हुए पल की तरह इस पल को भी कट जानी है
इन उम्मीदों पे ही सही पर
पर हां हम ज़िंदा हैं।

-अमितेश

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

तेरे बिना

तेरे आँखों के दो मोती और उनकी चमक
तेरी सुरीली बोली और तेरी हँसी की खनक
जब राह पर तेरे संग चलना भी भाता था
जब राहें भी हमारे प्रेम गीत गाता था
जब पलकें उठा के तुम दिन में उजाला भर देती थी
जब मुझे छू कर मेरे सारे दुःख हर लेती थी
वो दिन अब जाने कहाँ खो गए हैं
मेरे जीवन के सारे सपने भी अब सो गए हैं

तेरी जुल्फें और उनकी घुंघराली लटें
जब चाँद भी तुम्हारी गेसुओं में अटकता था
जब रात तुम्हारी कजरारी आँखों में सिमटता था
जब सवेरा तुम्हारी मुस्कराहटों से जागता था
जब बाहें  फैला कर तुम दिन को उजाला देती थी
वो दिन अब जाने कहाँ खो गए हैं
मेरे जीवन के सारे सपने भी अब सो गए हैं

जाने कब आएगी अब बसंत मेरे जीवन में
कब फ़ैलेगा उजाला मेरे मन उपवन में
कब मैं अपने जीने का वज़ूद तलाश पाऊँगा
बिन तेरे जाने मैं अधूरा ही मर जाउंगा।
-अमितेश

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

सतरंगी ज़िन्दगी

कई रंग हैं ज़िन्दगी के
कुछ रंग बेगाने से
कुछ के रंग हैं अपने से
कुछ तो बिलकुल अंजाने से
कुछ कुछ जाने पहचाने से
कुछ रंग जीवन से रंगीन
कुछ काले एकदम ग़मगीन
कुछ ख़ुमारी से भरपूर
कुछ यूँ हीं बेकदर बेनूर
कई रंग हैं ज़िन्दगी के.

कुछ मधुर मुस्कान की तरह
कुछ अल्हड़ अंजानी पहचान की तरह
कुछ गुलमोहर के पुष्प की तरह
कुछ खुश्क उस धूप की तरह
कुछ बच्चों की किलकारी की तरह
कुछ सतरंगी पिचकारी की तरह
कई रंग हैं ज़िन्दगी के.


कुछ तपती दोपहरी शीतल झुरमुट की तरह
कुछ अलसाई अल्हड़ बाला की तरह
कई रंग हैं ज़िन्दगी के.


फसल को जीवन देती बारिश की बूंदों की तरह
जीवन भरते उन सफ़ेद धुन्धों की तरह
कई रंग हैं ज़िन्दगी के

कुछ तुम्हारी निर्मल मुस्कान की तरह
कुछ तेरे रूप में मिले वरदान की तरह
कई रंग हैं ज़िन्दगी के.

- अमितेश

रविवार, 17 मार्च 2013

लम्हें

जीवन के अविरल लम्हों में
कुछ ग़म मिले और कुछ खुशियाँ
कुछ  बोझिल पल और कुछ अच्छे
हर लम्हों में जीये हैं कई लम्हे
कुछ हंसी ख़ुशी कुछ अश्कों में धुले
जीवन के अविरल लम्हों में
कुछ ग़म मिले और कुछ खुशियाँ

कुछ राह पथरीली मिली मुझे
कुछ राह पथरीली मैंने चुने
कुछ राहें फूलों से लदे भरे
कुछ राह बड़े ही रूमानी
कुछ पाँव में छाले देते रहे
कुछ मन में खुशियाँ छलकाते से
पर हर पल मैं चलता रहा
कुछ ग़म कुछ खुशियाँ दिल में रखे हुये.
जीवन के अविरल लम्हों में
कुछ ग़म मिले और कुछ खुशियाँ

कुछ दिल में दर्द का सैलाब दिए
कुछ नदियों सी निर्मल कलकल
पर जीवन हर पल चलता रहा
उन हठीली वक़्त से रूबरू हुए
कुछ ने अभिमान को ललकारा
कुछ ने ग़र्व को गौरवान्वित किया
जीवन के अविरल लम्हों में
कुछ ग़म मिले और कुछ खुशियाँ

कुछ वक़्त सिखाया पाठ नए
कुछ यूँ ही अनकहे निकल गए
कुछ ने समझाया रिश्तों को
कुछ मासूम बने ही बिसर गए
जीवन के अविरल लम्हों में
कुछ ग़म मिले और कुछ खुशियाँ

-अमितेश

रविवार, 10 मार्च 2013

पल

पल
तेरे साथ के रूहानी पल
हमारी खुशियों को परवाज़ देते पल
हमारे सपनों को आकाश देते पल
पल
तेरे साथ के रूहानी पल

मद्धिम लम्हों में जब
ह्रदय हिचकोले खाता है
जब कोई साथी नज़र नहीं आता है
तुमने बातों से बहलाया था
मुझको मुझसे ही मिलवाया था
उस पल में मैं सब भूल गया
अपने दुःख और विषाद अपने

पल
तेरे साथ के पल
बीते ना कभी आजन्म ये
तेरे साथ के रूहानी पल.

-अमितेश