सोमवार, 8 अप्रैल 2013

हम ज़िंदा हैं

जहाँ के ढेरो थपेड़े हैं
कई मर्यादाओं के घेरे हैं
अनजाने  से जीवन के कई फेरे हैं
कुछ अपेक्षाएं जीवन की कुछ मेरे हैं
डरे डरे  ही सही
पर हां हम ज़िंदा हैं।

सपने कई अधूरे से हैं पड़े हुए
अपेक्षाएं हैं कई यूँ ही धरे हुए
दिल में टूटी उम्मीदों के टुकड़े कई हैं भरे हुए
अपनी ही महत्वाकांक्षाओं से हम है डरे हुए
जीत जाने के ख्वाबों में ही सही
पर हां हम ज़िंदा हैं।

एक छोटी सी ज़िन्दगी और कई जिंदगानी है
हर पल में भरी अनगिनत कहानी है
आँखें नम और होठों पे मुस्कराती रवानी है
कई बीते हुए पल की तरह इस पल को भी कट जानी है
इन उम्मीदों पे ही सही पर
पर हां हम ज़िंदा हैं।

-अमितेश

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें