बुधवार, 3 अप्रैल 2013

तेरे बिना

तेरे आँखों के दो मोती और उनकी चमक
तेरी सुरीली बोली और तेरी हँसी की खनक
जब राह पर तेरे संग चलना भी भाता था
जब राहें भी हमारे प्रेम गीत गाता था
जब पलकें उठा के तुम दिन में उजाला भर देती थी
जब मुझे छू कर मेरे सारे दुःख हर लेती थी
वो दिन अब जाने कहाँ खो गए हैं
मेरे जीवन के सारे सपने भी अब सो गए हैं

तेरी जुल्फें और उनकी घुंघराली लटें
जब चाँद भी तुम्हारी गेसुओं में अटकता था
जब रात तुम्हारी कजरारी आँखों में सिमटता था
जब सवेरा तुम्हारी मुस्कराहटों से जागता था
जब बाहें  फैला कर तुम दिन को उजाला देती थी
वो दिन अब जाने कहाँ खो गए हैं
मेरे जीवन के सारे सपने भी अब सो गए हैं

जाने कब आएगी अब बसंत मेरे जीवन में
कब फ़ैलेगा उजाला मेरे मन उपवन में
कब मैं अपने जीने का वज़ूद तलाश पाऊँगा
बिन तेरे जाने मैं अधूरा ही मर जाउंगा।
-अमितेश

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