शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

झरोखें

बाद मुद्दत जो ये वाकया हुआ
वो सूखे सुर्ख गुलाब को जो छुआ
किताबों के पीले पन्नों के दरमियाँ
जिसने कई रूमानी लम्हें साधे रखे थे
अपनी क़ल्ब के वरिदों में।

कुछ चूड़ी के टूटे टुकड़े
चंद घुँघुरु पाज़ेब के
वो ख़ाली लिफ़ाफ़ा
जो ख़त के इंतज़ार में
आज भी अपना सूनापन जी रहा है।

वो रेशमी दस्ती
जिसपे तुमने उकेरी थी
हमारे वज़ूद की दास्तां
उन रेशमी मीनाकारी से।

कुछ रंगीन कंचे
माचिस की खाली डिब्बियां
कुछ पन्ने हमारे बचपन के
जिसपे छापे थे हमने
लड़कपन की कई मासूमियत और किस्से।

वो एक तस्वीर माँ के साथ की
जो black & white हो कर भी
पुराने दिनों के रंग से भरी थी,
आज भी उस तस्वीर के मानिंद
माँ के साथ वक़्त गुजारता हूँ।

वो कुछ पुराने सिक्के
जिन्हे गिन कर हम
जहाँ खरीदने का माद्दा रखते थे।

एक कोने में कुछ पुरानी यादें
करीने से रखे थे तह कर
कुछ हंसीं, थोड़ी मासूमियत
कुछ शिकवे, थोड़ी शिकायतें।

आज फिर यादों को
उनके झरोखे से देखा था
आज फिर उन रब्बानी यादों को
जी भर जिया था
आज फिर वो पुराने दिन
रूहानी दिन
उस दराज के मानिंद,
आज फिर
कुछ और जीने का जज़्बा आया है
उन तिलस्मी दिनों को।


- अमितेश