मंगलवार, 20 सितंबर 2011

दस्तक

प्यार
गोधुली के सिहरते सूरज सा एहसास
और वक़्त के साथ सघन होती उसकी तपिस

महुआ की चमकीले पीले फूलों सी नाज़ुक
और फैलती उसकी मदमाती महक.

एक अव्यक्त एहसास
सर्दी के गीले दिनों में भी
जो गुनगुना एहसास भर जाता है
दिलों के रस्ते.

यु ही बेवजह
मुस्कान फ़ैल जाना चेहरे पर,
चहकना हर छोटी-सी बात पे भी,
मुट्ठी भर ख़ुशी
सैलाब सी ज़िन्दगी पर फैलती सी,
जब ज़िन्दगी बदलती सी लगती है.

दिलों को दिलेरी सिखाता सा.

क्या मुझे फिर ये एहसास दे रहा है
अपने आने का
मेरे ह्रदय पर दस्तक दे कर!

- अमितेश

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