मंगलवार, 14 मई 2019

मीत

जेम्स परेरा कॉफिन सेलर - ख़ासी हिल्स की तराई में बसा एक छोटा सा गांव "रिंग्दोह" और रिंग्दोह की एक छोटी सी दुकान। जेम्स का वैसे तो यह पुश्तैनी व्यवसाय नहीं था पर एक जीवन में कई मौत देखने के बाद उसे मौत से लगभग प्यार सा हो गया था।  सो यह दुकान उसके उसी प्यार की अभिव्यक्ति भर थी।

जन्म से तो वो बढ़ई था, पर हुनर से "बेहतरीन कॉफिन" बनाने वाला। उसकी बनाई कॉफिन इतनी designer और खुबसूरत होती की मौत के इस माहौल में भी जब कोई उससे कॉफिन लेने आता, मुस्कुराये बिना नहीं रह पाता।

अज़ीब philosophy थी जेम्स की - "सारी ज़िन्दगी इस आस में अपने कर्मों का लेखा जोखा लेते रहते हैं कि हम स्वर्ग के क़रीब पहुँच रहे हैं या नर्क के।  कि अगर कुछ गलत हो जाए तो चर्च में जाकर confess कर आते हैं इस उम्मीद में कि परवरदिगार हमें, हमारे sin को माफ़ कर heaven का रास्ता तैयार कर रहा है।  तो इस हसीन राह की सवारी भी हो बेहतरीन होनी चाहिए ना।" इसलिए सारी हुनर, अपनी सारी रचनात्मकता वह इन 6*2 के बक्से में डाल देता।

खासा प्रसिद्द हो गया था वो ख़ासी हिल्स के कई गावों में।  दूर दूर से लोग उसकी कॉफिन खरीदने आते - एकाध तो बस उस दुकान में यूँ ही चले आते - मानों कॉफिन संग्रहालय जा रहे हो घुमने के लिए। और कला के इन बंद बक्से की कीमत - बस एक शर्त, कि किसी वैसे दो लोगों की उस आखरी क्रिया को करनें की शर्त जो शायद ईश्वर के Destiny Child नहीं हो पाए। और हां उससे उसका धर्म ना पूछना।  वो बॉडी है अब, बिना सांस की बॉडी।  उसका अब कोई धर्म नहीं रहा है।  बस वैसे ही उसका अंतिम संस्कार करना जैसे उसके घरवाले कहते है - क्योकिं घरवालों की साँसे अभी भी चल रही है।

अलग ही व्यक्तित्व था जेम्स का।  उम्र कुछ ज्यादा नहीं थी - कुछ 38 - 40 का था वो।  बेहद हंसमुख।  उसकी Sense Of Humor भी बड़ी कमाल की थी।  लोग अक्सर उसकी संगत पसंद करते थे, शिवाय उन मौकों के जब वो अपनी दुकान में होता।  क्योंकि वो बिलकुल ही बदल जाता जब अपनी कॉफिन की दूकान में होता।  मतलब उसकी Sense Of Humor थोड़ी Dark हो जाया करती।  उसकी बातों में मौत को मीत के तरह देखने का वर्णन होता। देखने वालों को लगता जैसे उसका स्वरुप ही बदल गया है। यमराज सा दिखने लगता।  अब भला यमराज के अलावा कौन है जिसे मौत से प्यार हो।  लोग अक्सर इसे सत्य से किनारा ही रखना चाहते हैं।  जो रूबरू ही हो जाये  ये सत्य तो लोग आँखें चुराने लगते - जैसे देखा ही नहीं हो।
जेम्स अक्सर कहता - कब तक बचेगा इससे। ये जब आएगी तब अहसास होगा कितनी प्यारी सी चीज है ये।  तब लगेगा कि ख्वामख्वाह ही भागे जा रहे थे इस सत्य से उम्रभर।

"जेम्स तुम ऐसे बात करता है जैसे तुझे मरने का Experience है।"

"हा हा हा हा. कई बार मरा हूँ मैं इस ज़िन्दगी में।  जब कोई किसी के लिए कॉफिन खरीदने आता और जैसे बोझ उतारने सा व्यवहार करता - तब मैं मरता हूँ।  जब कोई किसी अनजान के लिए Final Rite की तैयारी करता - तब मैं मौत से रूबरू होता। जब कोई बेटा अपने माँ - बाप के लिए यहाँ आता और कॉफिन ले जाने तक भी यह मानने को तैयार नहीं होता की अब उसके सर से उसके माँ - बाप का साया उठ गया है - तब मरता हूँ मैं।  और जब कोई कॉफिन खरीदने में भी Bargain करता - तब मरता हूँ मैं।"

"यार तुझसे बात करना भी बेकार है।"

"हा हा हा हा"

ऐसे ही बातों और बतकही में दिन बीत रहा था। ऐसे ही जेम्स कॉफिन बना रहा था। ऐसे ही लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे।  पर अक्सर लगता जेम्स को कि कुछ कमी है उसकी ज़िन्दगी में। कि  उसकी कला अभी भी अपनी पराकाष्ठा को नहीं पा पायी है। लगता की कभी ऐसा कॉफिन बनाये कि लोग देखते रह जाएँ। कि लोग उस कॉफिन में सोने के सपने बुने। ताज़महल से भी बेहतर। हां, शायद ये बेहतर होगा। शायद यही उसे आत्मिक संतुष्टि दे पाए। हां वो एक बेहतरीन कॉफिन बनाएगा। अपनी सारी कला, सारी Creativity लगा देगा उसमे। और ये उसके लिए बनाएगा जो मौत को मीत मानता हो। मेरी तरह। अजीब सी बात है, हो होने दो। जहाँ मेरा हुनर है, वहीँ तो बेहतरीन करूंगा ना।
जब  आपके अनुराग आपकी ऊंचाई से कुछ ऊँची हो जाए तो थोड़ी व्यथा तो होती है ना। फिर जेम्स को वो व्यथा क्यों नहीं हो रही। वो तो कुछ ज्यादा ही जज़्बाती होता जा रहा था अपने जूनून के लिए।

वो लग गया अपने जीवन का सबसे बेहतरीन कॉफिन बनाने में। वो अहले सुबह निकल जाता जंगल में - सही लकड़ी की तलाश में। कई पेड़ को ठोकता, बजाता, उसकी छाल छिलता, सूंघता फिर आगे बढ़ जाता। ऐसा कई महीनों तक चलता रहा। आखिरकार उसे सही लकड़ी मिल ही गयी। फिर उसे काट छील कर कई आकार बनाता, कुछ रखता कुछ फेंक देता। आसपास के लोगों को लगने लगा कि शायद जेम्स पागल हो गया है। चर्च के फ़ादर ने भी समझाने की कोशिश की, पर वो लगा रहा अपने धुन में। हालाँकि गांव वालों को पता था कि जेम्स जो कर रहा है वो ज़रूर कुछ नायाब फल देगा। शायद ताज़महल भी इसी जूनून से बनाया गया होगा। पर लोग नायाब और कॉफिन को एक साथ नहीं समझ पा रहे थे। तभी लोग उसे थोड़ा सनकी समझने लगे थे। अब भला कौन ऐसी इच्छा रखता है की मरने के बाद मैं सबसे बेहतरीन कॉफिन में जाऊं। मतलब शायद ही कोई अपनी कॉफिन की कल्पना अपनी कल्पना में भी करता होगा। मुमताज़ ने भी ताज़महल की कल्पना खुद नहीं की थी। अब कोई इसे कैसे समझाए कि हुनर का बेजाँ इस्तेमाल, हुनर का अपमान ही है।

पर जेम्स उस मिट्टी का नहीं बना था कि लोगों की बातें उसके सांचे का स्वरुप बदल सके। वो तो रमा था अपने काम में। जो एक धुन सवार हो गयी तो हो गयी। बात सिर्फ कॉफिन की नहीं थे। बात थी इसकी कि उस कॉफिन की सवारी कौन करे। कैसे ढूंढे उसे जो मौत को मीत मानता हो। जिसे मौत से बेइन्तहाँ प्यार हो। हाँ ये बात उसने सब को कह रखी थी कि अगर किसी को वो इंसान मिल जाये तो जरूर बताये। जेम्स खुद उसके परिवार से मिल अपनी सबसे बेहतरीन कलाकारी उन्हें गिफ्ट करेगा।

वो लगा रहा अपने काम में। यूँ हीं दिन आपस में जुड़ कर महीनें और फिर साल बनते रहे। और जेम्स वैसे ही अपने सपने को आकार देने में लगा रहा। तरह तरह के पत्थर, धातु जो जहाँ से मिल जाता जमा करता जाता। क्या पता कौन सी चीज उसके सपनों के जिगसॉ पज़ल को आकृति दे जाये। ऐसे ही उसके सपने हिस्सों में अपने आकार को लिए जा रहे थे।

***

हम हमेशा जो सोंचते हैं वैसा ही, उसी स्वरुप में हमेशा नहीं होता। शायद कोई है ऊपर में जो अपनी अलग ही रचनात्मकता दिखाता रहता है। जो हर चीज को Perfection के चश्मे से नहीं देखता। जो गर देखता तो क्यों लोग कहते की काश थोड़ा वक़्त और दिया होता तो अच्छा होता। वो बार बार लोगों को बताता रहता की Perfection कई बार Imperfection में भी होता है। बस नज़रिए चाहिए। बस हम यहाँ ये समझ नहीं पाते और अक्सर उसको कोसते रहते।

आज शायद गांव वाले ऐसा ही सोच रहे थे - जेम्स के बनाये बेहतरीन कॉफिन को अपने कंधे पे उठाये। काश कुछ वक़्त और दिया होता परवरदिगार ने जेम्स को तो जेम्स इस कॉफिन में लगभग जान ही दाल देता।
जेम्स था की अपने बनाये इस ताज़महल में लेटा था, निश्चेतन। उसे शायद परवाह नहीं थी कि ये कॉफिन सच में दुनिया की सबसे बेहतरीन कॉफिन है भी या नहीं। हाँ गांव वालों को ये जरूर पता था कि जेम्स से बड़ा मौत का प्रशंसक कोई नहीं है इस दुनियां में। इस ताज़महल का हक़दार सिर्फ जेम्स ही है, और कोई नहीं।


- अमितेश