सोमवार, 20 दिसंबर 2010

ठंढे दिनों के गर्म अहसास

वो ठंडी हवाओं का जिस्म में सिहरन पैदा करना
वो गुनगुनी धुप की हलकी हलकी थपकियाँ देना
वो देर सुबह आँगन में बैठ किताबों के बीच खो जाना
वो लहकते फूल अमलतास के सिहरते से टूट कर गिर जाना.
जाड़े के उन ठंढे दिनों की गर्मी आज भी साथ है मेरे,
बस वो दिन दूर हो गए है मुझसे
शायद मै दूर हो गया हूँ उन ठंढे दिनों के गर्म अहसास से.

- अमितेश

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