रविवार, 29 जनवरी 2017

देश

वो अहले सुबह की प्रभात फेरियां
वो झण्डोत्तोलन के बाद की जलेबियाँ
वो यादों के गलियारे से निकलते राष्ट्रगान
वो झंडे की सलामियां
वो गणतंत्र दिवस का फ्लैग मार्च
वो प्लास्टिक के मेड इन चाइना तिरंगा
बच्चो के हाथों में फहरते देख
देश तुम बहुत याद आते हो.

वो पल पल बदलते सामाजिक समीकरण
वो बनते बिगड़ते मानवीय मूल्य और मंत्र
वो बदलते शिक्षक और शिक्षा के स्तर
वो एक ही ज़मीन पे खिंचती धर्म - जाति की लकीरें
वो सन्नाटे में गूंजती तुम्हारी सिसकियों को सुन
देश तुम बहुत याद आते हो.

वो सत्तर की हो चुकी स्वतंत्रता
और सत्तर को छूती गणतंत्रता
शायद तुम्हारी बढ़ती उम्र ने
तुम्हे अप्रासंगिक कर दिया है
रोज़ तुम्हे क्षण क्षण, तिल तिल मरता देख
देश तुम बहुत याद आते हो.

- अमितेश