रविवार, 25 जुलाई 2021

बिद्या कसम

"खा बिद्या कसम तभी मानेंगे कि तुम सच बोल रहे हो।"

"बिद्या कसम!"

"नहीं, ऐसे नहीं। गला पकड़ कर बोलो। ऐसे बिना गला पकड़े बोलने से कसम नहीं लगती है।"

"अच्छा बाबा ये ले... बिद्या कसम। बस अब ठीक है ना।" कह कर रवि ने पीछा छुड़ाने की कोशिश की। 

ब्रज, राजेश और शैलेश को थोड़ा भरोसा तो हुआ। पर फिर भी बात उनके गले से उतर नहीं रही थी। बात भी तो ऐसी ही थी ना। शैलेश ने आखिरी तीर मारा... जो तेरी बात झूठ हुई ना तो तुम्हारी सातो बिद्या नाश हो जायेगा।" कह कर शैलेश ने आँखे भींची और कुछ बुदबुदाया, मुट्ठी आसमान की ओर कर के कुछ तो उसमे समा जाने का नाटक किया। फिर जो बुदबुदा रहा था उसे मुट्ठी में भरा और रवि की ओर फेंक दिया। 

सारे बच्चे अचानक सकते में आ गए। कितना आता है शैलेश को। देखना अगर रवि की बात झूठ निकली तो कल तक उसकी सातों बिद्या नाश हो जाएगी। वो तो बोल भी नहीं पायेगा। 

रवि थोड़ा डर गया। बोला - "अरे हम देखे हैं। भले दूर से देखे हैं। लेकिन अंधा तो नहीं हैं ना। शिवजी के चारो ओर रोज सुबह एक सांप कुंडली मारे बैठा रहता है। हम जा कर देखे भी थे एक बार।"

"तुम नजदीक जाकर देखा था सांप को? कौन सा सांप था? शिवजी के गले में नाग देव होते हैं। तुम कही गेहुअन तो नहीं था?" राजेश ने कन्फर्म करने के लिए पूछा।

रवि आज कटघरे में खड़ा था - बिना वकील के। आज उसकी बात पर कोई उसकी वकालत करने के लिए खड़ा भी नहीं था। रवि का कहना था कि मोहल्ले के छोटा शिव मंदिर में शिवलिंग के चारो ओर एक नाग सांप रोज सुबह  बैठ जाता है। वो भोले बाबा की सेवा करता है। अब भला इस बात पर किसे भरोसा होगा। रोज इतना लोग वहां पूजा करने जाते हैं, अगर सच में ऐसा होता तो ये बात तो हर घर को पता होता। कभी तो सुना नहीं है ऐसा। अगर ये नाग देव खाली रवि को दिखते हैं तो उसमे या तो कोई दिव्य शक्ति आ गयी है या ये पगला गया है। 

"अरे बोक्का समझे हो क्या हमको कि जब नाग बाबा रहे तो हम मंदिर में जायेंगे। भोले बाबा की रखवाली करता है वो। हमको देखेगा तो डंस नहीं लेगा। हम मंदिर के गेट से देखे थे।" रवि ने अकाट्य दलील दी। 

"तुम तो हो ही पापी। तुमको तो जरूर डंसेगा।" ब्रज ने कहा और सारे बच्चे फिस्स से हंस दिए।  

"कल सुबह हम सब मेरे घर पर आ जाना। हम तुमलोग को साथ में ले जा कर दिखा देंगे। तब तो पूरा भरोसा होगा ना।" 

सब तैयार हो गए। तय किया गया कि ब्रज, राजेश और शैलेश सुबह आठ बजे रवि के घर पर मिलेंगे। फिर सब छोटा शिव मंदिर पर जायेंगे। 

सभा स्थगित हो चुकी थी। सब अगली सुबह के इंतज़ार में थे कि सुबह - सुबह ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। रवि की ये कपाल कल्पना कल सुबह ही कन्फर्म हो जाएगी। जो बात गलत निकली तो रवि की सातो विद्या पक्का नाश हो जाएगी। शैलेश ने मंतर जो फूंका था। 

***

सुबह - सुबह तीनों रवि के घर पर थे, पक्का आठ बजे। तीनों नहा कर पहुंचे थे। उन्हें देखते ही रवि ने चुटकी ली - "हमको पता था कि तुम सब को हमारी बात पर पूरा भरोसा है। जभी नहा कर आये हो ना कि नाग देव दिखेंगे तो मन ही मन में पूजा कर लोगे। लेकिन तुमको देखते ही सांप फन निकाल कर ऐसा फुफकारेगा कि तुम सब की हवा वहीं खड़े - खड़े टाइट हो जायेगा।"

"चलो अब इतना बकलोली करने से अच्छा है कि मंदिर चलते हैं। कही नाग देव चले ना जाएं" शैलेश बोलै। सब ने सहमति में सिर हिलाया। चारो दोस्त चल पड़े छोटा शिव मंदिर की ओर, अपने जीवन की सबसे अद्भुत घटना का अनुभव करने के लिए। मंदिर रवि के घर से ज्यादा दूर नहीं था। पांच मिनट भी नहीं लगा उन्हें वहां पहुंचने में। वह एक छोटा सा मंदिर था। मंदिर के चारो ओर ऊँची दिवार बनाई गयी थी। बाउंड्री का दरवाजा सीधा मंदिर के गर्भगृह तक ले कर जाता था। गर्भगृह में एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित थे। क्योंकि चारो ओर की दिवार थोड़ी ऊँची थी सो गर्भगृह में रोशनी थोड़ी कम रहती थी। मंदिर एकदम सड़क के किनारे था। सो अगर दरवाजा खुला हो तो सड़क से ही शिवलिंग का दर्शन किया जा सकता था। चारो दोस्त कुछ बेहतर देखने की आकांक्षा में वहां पहुंचे थे। चारो सड़क पर खड़े थे। दुरी कुछ दस फिट की होगी उनके और शिवलिंग के बीच। उस समय मंदिर में कोई नहीं था। जब चारो की नजर शिवलिंग पर पड़ी तो वे भौचक रह गए। सच में एक नाग देव अपना फन निकले शिवलिंग के ऊपर खड़े थे। पूरा शिवलिंग  लपेट रखा था। सांप स्थिर था। कोई हरकत नहीं हो रही थी उस सांप में। ये रवि के लिए तो रोज की घटना थी। अलबत्ता वो खड़ा अपने तीनो दोस्तों को अभिभूत हुआ देख कर मन ही मन मुस्करा रहा था। शैलेश, ब्रज और राजेश के लिए यह एक अद्भुत घटना थी। उन्हें तो लगा जैसे मोक्ष मिल गया हो। चारो बीच सड़क पर हाथ जोड़े शिवजी के आगे नतमस्तक खड़े थे। कुछ क्षण ऐसे रहने के बाद रवि ने कोहनी मारी ब्रज को कि अब चलना चाहिए। कहीं नागराज नाराज ना हो जायें। सारे दोस्त वहां से निकल गए और बड़े शिव मंदिर की ओर चल दिए। बड़ा शिव मंदिर इस मंदिर से ज्यादा दूर नहीं था। उन्हें लगा शायद बड़ा शिव मंदिर में भी यह दुर्लभ दृश्य देखने को मिल जाये। लेकिन वहाँ के शिवजी बिना नागराज के ही बैठे थे। 

शैलेश बोलै - "वाह रवि, आज तो तू हम सबमे सबसे बड़ा हो गया है। आज तो तेरी इज्जत हमारी नजर में और भी बढ़ गयी है। अब से तुम हमारे गुरु हो। गुरु रवि।" 
सब ने हामी भरी। रवि का सिर थोड़ा और ऊंचा गया। मन ही मन नागदेव को धन्यवाद दे रहा था की आज उन्होंने उसकी लाज रख ली। ब्रज और राजेश रवि को ऐसे देख रहे थे जैसे साक्षात् भगवान् शिव रवि के रूप में उनके सामने खड़े हो। पर फिर लगा कि ये रवि के लिए कुछ ज्यादा हो जायेगा। सो ये खयाल तो छोड़ दिया पर वे सब अभी भी किंकर्तव्यविमूढ़ से बैठे थे आज की सारी घटनाक्रम से।  

रवि बोलै - "छोटे शिव मंदिर के शिवजी यहाँ के शिवजी से ज्यादा शक्तिशाली हैं। जभी तो नागराज उनकी शरण में जाता है। यहाँ नहीं।" 

उसकी ये बात थी तो बड़ी बेतुकी पर कम - से - कम आज तो कोई उसकी बात काटना नहीं चाहता था। सब ने अनमने ही सही, सिर हिला दिया। भले ही यह सहमति नहीं थी रवि की बातों का, पर बस ये था कि भाई आज जो तू बोले। 

जो रवि आज तक इस भावना में रहता थी कि भगवान् शिव ने पूरी पृथ्वी में सिर्फ उसे ही चुना है यह अद्भुत दिखाने के लिए, यह भावना अब तीन और लड़को में आ गयी थी। उनके लिए छोटे शिव मंदिर के शिवजी जाग्रत शिव बन गए थे और रवि शिवजी का पिशाच। उसी ने तो सबको इस अद्भुत घटना का साक्षी बनवाया था। 

चारो बच्चो के जीवन में यह दृश्य अचानक एक अद्भुत बदलाव ले आया था। जब भी वो छोटा शिव मंदिर के सामने से गुजरते, शिवजी के सामने ऐसे झुक कर प्रणाम करते जैसे वे उनसे संवाद स्थापित करने की कोशिश कर रहे हो। वो इन बच्चो के लिए ईश्वर के साथ - साथ परम मित्र से हो गए थे। मित्र इसलिए कि उन्होंने पूरी दुनियां में अपना नागराज वाला राज सिर्फ इन्हें ही दिखाया - बताया था। 

दिन यूँ ही गुजर रहा था। गाहे - बगाहे जब इन्हे नागदेव के दर्शन करना होता, वो सुबह - सुबह छोटा शिव मंदिर पहुँच जाते। नागदेव का दर्शन दूर से करते और एक मंद मुस्कान लिए अपने गंतव्य की ओर चले जाते। 

"शैलेश, चल बेटा मेरे साथ मंदिर चल। आज शिवरात्रि है। शिवजी पे जल अर्पित करना है। आज उनकी पूजा की जाती है। चल छोटा शिव मंदिर चल मेरे साथ।" शैलेश की माँ उसे सुबह - सुबह उठा रही थी। छोटा शिव मंदिर का नाम सुनते ही शैलेश अकचका कर उठ गया। सुबह का समय है और माँ छोटा शिव मंदिर जाने की बात कर रही है। उसे पता नहीं है कि सुबह - सुबह नागदेव शिवजी के चारो ओर लिपट कर बैठे रहते हैं। कही शिवजी पर जल अर्पित करने पर नागदेव नाराज़ ना हो जाएँ। माँ को गुस्से में डंस लिया तो। नहीं नहीं ऐसा मैं होने नहीं दूंगा। 

शैलेश माँ को टालते हुए बोला - "माँ मैं अभी तैयार होता हूँ। हमलोग बड़ा शिव मंदिर चलते हैं। बड़ा शिव मंदिर के बड़े शिवजी ज्यादा पावरफुल हैं। ज्यादा आशीर्वाद मिलेगा।"

"छी: छी: भगवान के लिए ऐसी बात नहीं कहते। सारे मंदिर के शिवजी एक ही होते हैं। कोई छोटा - बड़ा नहीं होता। जल्दी से नहा कर तैयार हो जा। तबतक मैं पूजा की तैयारी करती हूँ।" माँ ने समझते हुए बोला। 

शैलेश तैयार हो रहा था और सोंचता जा रहा था कि नागदेव को खुश कैसे रखे कि वो माँ को कोई नुकसान ना पहुँचाये। अभी भी उसके दिमाग में चल रहा था की माँ को छोटा शिव मंदिर जाने से कैसे रोके। 

माँ ने गंगाजल का लोटा पकड़ाते हुए शैलेश को कहा - "देख अच्छे से पकड़ना। गंगाजल है इसमें, गिरना नहीं चाहिए।"

"पर माँ शिवजी की तो जटा से गंगा निकलती है। फिर वापस उनपर गंगाजल क्यों डालना?" शैलेश को समझ में नहीं आया गंगाजल को शिवजी पर वापस डालने की बात। 

"बेटा, गंगा बहुत पवित्र नहीं है। उनका जल शिवजी को बहुत पसंद है। इसलिए सांकेतिक रूप से गंगाजल उनपे अर्पण करते हैं।" माँ को जितना आता था शैलेश में भरने की कोशिश कर रही थी। 

बातों बातों में दोनों छोटा शिव मंदिर पहुँच गए थे। 

मंदिर में कुछ लोग पहले से पूजा कर रहे थे। यह थोड़ा छोटा मंदिर था सो शैलेश अपनी माँ के साथ सड़क पर खड़े हो कर लोगों के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे। बाहर से शिवलिंग साफ - साफ दिख रहा था। शिवजी के गिर्द लिप्त हुआ नागराज भी। लेकिन अंदर लोग बेझिझक पूजा कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि उन्हें नागराज दिख ही नहीं रहा हो। नागराज भी एक जगह पर ही स्थिर था। कोई हरकत नहीं कर रहा था। शायद वो भी डरा हुआ था कि कहीं उसे हरकत करता देख लोग डर कर भाग ना जाएं। या फिर ऐसा हो की नागराज सिर्फ वो और उसके तीन दोस्तों को ही दीखता होगा। किसी और को दीखता होगा। उसने फिल्मों में देखा था ऐसा। शैलेश के यहाँ प्राण सूखे हुए थे। उसने सोंचा कि वो अंदर नहीं जायेगा। कहीं नागराज और शिवजी उससे नाराज ना हो जाएँ। बोले कि तुम्हे तो मैं दीखता हूँ ना। फिर लोगों को अंदर आने से क्यों नहीं रोका। कही गुस्से में श्राप ना दे दें। वैसे भी शिवजी तो कितने गुस्से वाले भगवान् हैं। 

मंदिर अब खाली हो चुका था। शैलेश की माँ गर्भगृह में जाने लगी। शैलेश वहीं सड़क पर बुत बनकर खड़ा था। माँ ने उसे पुकारा - "अरे जल्दी से गंगाजल ले कर आजा।"

शैलेश वही सड़क पर खड़े खड़े हाथ बढ़ा कर गंगाजल का लोटा माँ को देने की कोशिश करने लगा। माँ ने मंदिर के अंदर से ही उसे झिड़का।    

"अरे माँ... वो... शिवजी को गुस्सा ना आ जाये। मैं तो कभी मंदिर जाता नहीं। आज अचानक मैं चला जाऊं तो शिवजी भी भौचक रह जायेंगे। गुस्सा कर मुझे श्राप ना दे दें।" शैलेश अभी भी डर के मारे अंदर ना जाने के बहाने ढूंढ रहा था।   

माँ ने जोर से बोला - "तू आता है या मैं तुम्हे कान पकड़ कर यहाँ लाऊँ।"

शैलेश धर्म संकट में पड़ गया था। जो अंदर जाए  नाराज, बाहर रहे तो माँ को गुस्सा आ जायेगा। भरे मन से वो कदम बढ़ा रहा था। ये दस कदम उसे इतना भारी लग रहे थे कि जैसे लगा की कोई तो आंधी आ जाये और उसे अंदर ना जाना पड़े। पर आंधी भी उसे आज धोखा दे रही थी। भरे मन से वो मंदिर के अंदर आया। 

"गर्भगृह में पहुंचते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी। अरे... ये नागराज तो ताम्बे के हैं। ओह तो कोई जीवित नागराज था ही नहीं। हमेशा दूर से ही इस नागराज को देखा था। तभी ये नागराज कोई हरकत नहीं करते थे। शैलेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था की इस ताम्बे के नागराज को देख कर वो खुश हो या वहीं दहाड़ मार कर रोए। आज तक तो उसे लग रहा था कि उसे दिव्य दृष्टि मिल गयी है। उसे शिवजी के चारो ओर नागराज लिपटे हुए दिखते हैं। आज अचानक नागराज का राज तो क्या खुला कि वो ताम्बे के हैं, उसकी तो दिव्य दृष्टि ही खत्म हो गई। वो अचानक एक महान बच्चा से आम बच्चा बन गया था। आज - अभी वो रवि से निपटेगा। उसे पक्का उसकी छट्ठी का दूध याद दिला देगा। बताएगा कि उसकी एक गलत अफवाह ने आज शैलेश को उसकी खुद की नजरों में गिरा दिया था। आज तो उसे ऐसा श्राप देगा कि उसकी सातों विद्या ही नहीं, चौसठों कलाएं भी छूमंतर हो जाएगी। आज शैलेश सच में खुद की नजर में एक आम बच्चा बन था। उसके साथ साथ ब्रज और राजेश भी। बस रवि पिशाच था और पिशाच ही रहेगा। 

- अमितेश