बुधवार, 15 जनवरी 2020

सेकुलरिज्म

गाजर के हलवे के साथ
पालक साग खाना पड़ता है,
क्या कहें ज़नाब, इन दिनों
हर रोज secularism दिखाना पड़ता है.


बात राम की करो तो
पूजा को इबादत बताना पड़ता है,
क्या कहें ज़नाब, इन दिनों
हर रोज secularism दिखाना पड़ता है.


जाऊं जो दरग़ाह पे कभी
मत्था टेक के आना पड़ता है,
क्या कहें ज़नाब, इन दिनों
हर रोज secularism दिखाना पड़ता है.


त्याहारों का भी कुछ यों हुआ कि
दिवाली में अली और रमज़ान में राम बताना पड़ता है,
क्या कहें ज़नाब, इन दिनों
हर रोज secularism दिखाना पड़ता है.


सूरज, चाँद, गाय और गिरगिट का भी
आज धरम मज़हब बताना पड़ता है,
क्या कहें ज़नाब, इन दिनों
हर रोज secularism दिखाना पड़ता है.



- अमितेश