गुरुवार, 8 अगस्त 2013

वक़्त गुजार ले संग संग

सारे ग़म बिसार दे ज़िन्दगी के संग संग
थोड़ा और वक़्त गुजार लें संग संग.

उन लम्हों को जी लें फिर जरा
जो जिये ही ना गए हैं
उन तारों को गिन लें फिर जरा
जो गिने ही ना गए हैं.
इन अप्रतिम लम्हों के बहाने ही सही
थोड़ा और वक़्त गुजार लें संग संग

तेरी आँखों में जमी सुर्खी को
फैला के आस्मां पे फिर गोधुली कर दें
तेरे बिखरे से काजल से
रात में थोड़ा  और कालिख भर दें
उन बिसरी हुई मुस्कान को तेरे समेट के
मुरझाई सी ज़िन्दगी में थोड़ा और ख़ुशी भर दें
इन अप्रतिम लम्हों के बहाने ही सही
थोड़ा और वक़्त गुजार लें संग संग

धुमिल से होते हमारे पदचिन्हों को संभाले हुए
उखड़ती हुई हमारी साँसों को सहेजे हुए
चलो ज़िन्दगी में कुछ और भी ज़िन्दगी भर लें
इन अप्रतिम लम्हों के बहाने ही सही
थोड़ा और वक़्त गुजार लें संग संग

क्या पता ये लम्हें गुजार न पाएं दुबारा
शायद इंतज़ार में पथरा जाएँ
आँखें हमारी फिर जीने को
इन दु:स्वप्नों में ही सही
थोड़ा  और वक़्त गुजार लें संग संग


-अमितेश


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