शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

सपनीली सफ़ेद आँखें

सपनीली सफ़ेद आँखें

झांकता हूँ जब इनमे
महसूस होती है मुझे
तुम्हारी  रक्त और धडकनों की रवानी
तुम्हारी वो सपनीली सफ़ेद आँखें।

एक दुनिया है बसी
तुम्हारी सपनीली सफ़ेद आँखों में,
अक्सर बहता सा जाता हूँ इनमे
जब जब उतरता हूँ मैं
तुम्हारी आँखों के जरिये
उस सपनीली सी दुनिया में।

जब जब खो जाना लुभाता है
तुम्हारी उन सपनीली सफ़ेद आँखों में
तुम छू कर मुझे
तोड़ देती हो मेरी तंद्र
और दिखाती हो अपने हृदय का रास्ता
अपनी सपनीली आँखों के बाबस्ता।

सपनीली सफ़ेद आँखें

तुम्हारी आँखों के भंवर में
जब डूब जाना नियति सी बनती जाती है,
मेरा हाथ पकड़ कर
जीवनदान देती हो तुम
और मैं शापित सा महसूस करता हूँ
इस जीवनदान को पा कर।

बसाना चाहता हूँ मैं
अपना छोटा सा जहाँ
उन सपनीली सफ़ेद आँखों की दुनिया में,
परवाह किये बगैर
इस दुनिया की कंटीली व्यंगात्मक आँखों का।
धन्य कर दो मुझे अपनी आँखों के एक स्पर्श से
कि आजन्म मैं खोया रहूँ
तुम्हारी उन सपनीली सफ़ेद आँखों में।

- अमितेश

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें