मंगलवार, 20 जून 2017

Archived

बाइस की उम्र तक पढ़ाई फिर नौकरी और पैंतालीस तक आते आते रिटायरमेंट। हां तब तक इतने पैसे बना लो की रिटायरमेंट वाली लाइफ बिना किसी उलझन के बीते। हसरतें पूरी करने के लिए कई दफा सोचना ना पड़े. नाही हसरतों को Replace करना पड़े किसी अन्य हसरत से. 

सब कुछ वैसे ही Planned Way में हो रहा था प्रवीर की लाइफ में. पहले IIT कानपुर  फिर IIM कोलकाता और 23 - 24 की उम्र तक एक MNC में नौकरी हो गयी थी. 35 तक तो वो उस कंपनी का GM बन गया था और 40 तक Global GM. करियर के इस पड़ाव तक आते प्रवीर अरबपति बन चुका था. अब वो अपना रिटायरमेंट प्लान कर सकता था सो जैसा सोचा वैसा किया. 45 की उम्र में उसने VRS ले लिया था. उसकी कंपनी ने ससम्मान उसे रिटायरमेंट दे दिया था. अब आगे जो था वो अपनी बीबी के साथ समय बिताना और अपने बेटे के लिए हर वो सुविधाएँ जमा करना जो उसे उससे भी बेहतर भविष्य दे पाए. प्रवीर अपनी जिम्मेदारियों से कभी भागा नहीं. हर वो बात जो ज़रूरी थी, किया। रिटायरमेंट का पहला साल तो कब निकला पता भी नहीं चला. 

पता नहीं क्यों आज वो एक छुट्टी पे जाना चाहता था... अकेले. कहाँ पता नहीं, क्यों, शायद उसका जवाब नहीं था उसके पास या जवाब वो खुद को भी नहीं देना चाहता था. रचना भी उसे समय देना चाहती थी. वो प्रवीर को उस वक़्त से जानती थी जब से उसमे ये ज़िन्दगी वाली फिलॉसोफी बन रही थी. 
कई दफा ज़िन्दगी के भाग दौड़ में हम कुछ छोटी लेकिन अहम् बातों को miss कर जाते हैं जो गाहे बगाहे ज़िन्दगी की सम्पूर्णता को मुँह चिढ़ा जाती है. रचना इस बात को भली भांति जानती थी. सो उसने प्रवीर की इस एक इच्छा को पूरी करने को तथास्तु कह दिया. शायद उसकी ज़िन्दगी की वो कुछ छोटी छोटी बातें जो miss हो गई थी प्रवीर समेटना चाहता था. 

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बाहर का मौसम जैसे भीतर सिहरन पैदा कर रही थी. बाहर झक सफ़ेद बर्फ की चादर फैली थी. पूरा हिमालयन रेंज जैसे सफ़ेद चादर ओढ़े सुस्ता रहा था. एयरलाइन्स वालों ने लेह जाने के लिए ATR उपलब्ध करवाया था. सो ज्यादा ऊंचाई पर नहीं उड़ने की वजह से जैसे प्रवीर उन हिमालयन रेंज का एक अविभाज्य हिस्सा बना हुआ था पुरे रस्ते. जैसे वो हर नॉटिकल माइल्स के साथ inseparable होता जा रहा था उस आदि हिमालय से. 

लेह... यह जगह उसके Archived Mail का एक अहम् हिस्सा था. Archived Mail... हाँ ये उसकी आदत से थी की जो काम वो शायद बाद में करना चाहता था उसे Archived कर देता था. हाँ हमेशा ध्यान रखता था की Mail उसके Archive Folder में ज्यादा समय तक ना रहे. बस ये लेह वाला Mail ही कई अरसों से उसके Archive में पड़ा था... शायद 20 - 22 वर्षों से. पता नहीं क्यों वो इतने समय तक वहां पड़ा था... ना जाने ये वक़्त सही था क्या की उसे un-archive किया जाए... क्या ये सच में un-archive हो भी पायेगा... ना जाने कितनी बातें, कितने विचार उसके मन में तैर रहे थे. हर बीतते वक़्त के साथ वो उन सफ़ेद पहाड़ों में घुलता जा रहा था, उनका और भी अपना हिस्सा होता जा रहा था. वो समझ नहीं पा रहा था की वो उस Archive Mail के बारे में कुछ जयादा ही सोच रहा है या उसका मस्तिष्क शुन्य में जाता जा रहा है. उसकी यह तंद्रा Air Hostess की आवाज़ के बाद ही भंग हुई - "देविओं और सज्जनों, लेह के Kushok Bakula Rimpochee Airport में आपका हार्दिक स्वागत है. इस समय बाहर का तापमान 7 Degree Celsius है. यह एक सैनिक हवाई अड्डा है और यहाँ तस्वीरें लेना वर्जित है. जब तक कुर्सी की पेटी बांधने का संकेत बंद ना हो जाये, कृपया अपनी जगह पर बैठे रहें... "

प्रवीर अपनी तंद्राओं में ही दिल्ली से लेह पहुंच गया था. हालाँकि मानसिक तौर पर तो अब तक वह लेह में भली भांति घुल मिल भी चुका था, बस शरीर अभी पंहुचा था. एयरक्राफ्ट का दरवाज़ा खुलते ही जो सिहरन अब तक आँखों में थी, वो अच्चानक ही पुरे शरीर में फैलने  लगी थी. 

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यह एक छोटा सा गेस्ट हाउस था मॉल रोड के एक छोर पे. हालाँकि यह गेस्ट हाउस प्रवीर की हैसियत से कहीं छोटा था. किसी भी एंगल से वो प्रवीर के स्टैण्डर्ड का नहीं था. यह सब प्रवीर को गेस्ट हाउस पहुंचने के बाद पता चला हो ऐसा भी नहीं था. यह गेस्ट हाउस खुद उसने ही Book की थी, Online App से. उसे इस गेस्ट हाउस और इसमें उपलब्ध होने वाली सुविधाओं के बारे में पहले से ही इल्म था. यहाँ रुकने का एक उद्देश्य था. इस गेस्ट हाउस के पास ही एक Cafeteria थी, जहाँ बैठ कर लोग किताबें पढ़ सकते थे, और अपने भीतर पनपते किताबों को लिख भी सकते थे. 

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"Bookworm Cafeteria" - अजीब सा नाम था ये. असल में अजीब सी जगह भी थी ये. एक Cafeteria जो घर सा लगता था. दीवारों पर Designer Book Shelf लगे थे जिन पर करीने से हिंदी और अंग्रेजी की पुस्तकें रखी हुई थी. साहित्य, यात्रा वृतांत, इतिहास, मनोविज्ञान और न जाने क्या क्या. कई विषयों की कई किताबें. जगह - जगह कुर्सियां लगी थी, आराम कुर्सियों जैसी. कुछ ज़मीन पे गद्दे रखे थे. उनपे साफ़ सुन्दर चादर बिछी हुई थी. कहीं छोटी चटाई बिछी थी दीवारों से लग के. हर जगह एक या दो लोगों के बैठने की जगह थी. हर जगह पर लगभग एक जैसी ही Coffee Table राखी हुई थी. तिकोने Coffee Table. उस पर एक छोटा सा एक पन्ने का लैमिनेटेड मेनू कार्ड रखा था - बहुत ही सीमित मेनू थी - कॉफ़ी, चाय, निम्बू चाय, Fresh Lime Water / Soda, क्लब सैंडविच और ब्रेड बटर बस. लिहाजा आपके पास कुछ ज्यादा Choice नहीं थी खाने पीने की. अगर भूख लग जाए किताबें पढ़ते - पढ़ते तो सामने के होटल से खाना पार्सल करवा कर टेरेस पे खा सकते थे. बस साफ़ - सफाई का ध्यान आपको रखना होगा. 
कुल मिला कर यह जगह Book Worm के लिए ज्यादा और कॉफ़ी पीने वालों के लिए थोड़ी काम थी. और ये सब एक 20 - 21 साल की लड़की मैनेज कर रही थी. 

प्रवीर जब पहली बार उससे मिला तो लगा ये शायद उसी का एक हिस्सा सा है. वो एक Missing हिस्सा जो अनायास ही प्रवीर को एक पूर्णता दे गया था. 

"Hi, मेरा नाम प्रवीर है." 

"Hello Sir, welcome to Navya's Bookworm Cafeteria."

नव्या... अच्छा नाम था... आज का नाम... आधुनिक वाला नाम. वो एक नयी लड़की ही थी. 20 - 21 साल की. तक़रीबन पांच फिट लम्बी और पहाड़ी नैन नक्श. उसकी लुक में थोड़ी से उत्तर भारतीयता भी झलकती थी. वैसे भी हमारे बड़े ही Clear Sorting Mechanism हैं लोगों को ले कर. पहले देश, फिर क्षेत्र, फिर प्रान्त और फिर जाति। और इस पुरे Sorting Process में हम एक स्टेप भी miss नहीं करते. प्रवीर का मस्तिष्क ना चाहते हुए भी उस Sorting Process को Follow कर रहा था. 

"Sir..." उस एक आवाज़ ने फिर से खींच कर उसे वापस खड़ा कर दिया था इस Cafeteria में. 

"Sir, feel comfortable here. Treat this as your own house and select what you want to read today. हम सिर्फ कॉफ़ी और सैंडविच का चार्ज करते हैं. किताबें और समय एकदम फ्री है."

"Umm, हाँ... Thank You." प्रवीर फिर वापस वहीँ चला गया था जहाँ वो कुछ क्षण पहले तक था. काफी Mechanized तरीके से वो उस Cafeteria की दिवार  दर दिवार घूमता रहा, अनायास ही एक किताब उठाई और एक कोने में बैठ गया. थोड़ी देर में एक कप कॉफ़ी आ गयी उसकी कॉफ़ी टेबल पर. उस कफ मग पर "Bookworm Cafeteria" लिखा था और एक किताब पे कुछ Silver Fish की तस्वीर भी छपी थी. प्रवीर ने जो किताब उठाई थी उसे खोल कर अपना अतीत पढ़ने लगा. लगा वो पढ़ कुछ और रहा है और उसकी आँखों के आगे चल कुछ और रहा है. कभी वो अपने IIT के दिन याद करता, कभी अपनी Archive Mail में खो जाता. क्या मालूम वो जिस Archive Mail को पिछले 20 - 22 साल से Track कर रहा था, ये वही है. क्या 20 - 22 साल पहले वीर्य दान से जन्मे बच्चे पर भी आपकी भावनाएं जागृत हो सकती हैं? क्या नव्या उसी का एक हिस्सा है? क्या सच में नव्या के प्रति उसके मन में पितृत्व की भावना है भी की नहीं. क्या यह सही है की 20 - 22 साल पहले किये गए किसी कृत्य को इस हद तक Track किया जाये?... पता नहीं क्या - क्या सोचे जा रहा था वो... न जाने कितनी ही भावनाओं के उछाह को वो महसूस कर रहा था अपने भीतर. हालाँकि कोई भावना सैलाब बन अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं कर रही थी. शायद उम्र हममें इतनी परिपक्वता दे जाती है कि जो अंदर चल रहा होता है उसे हम अंदर ही समेट - सहेज पाते हैं. जो बाहर निकलने की उछृंखलता नहीं दिखा पाता। 

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कुछ दिनों तक... शायद 7 - 8 दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. प्रवीर रोज कुछ घंटों के लिए Bookworm Cafeteria आता और किताबें चाहे कोई भी उठाता, पढ़ता अपना अतीत ही था. इतने दिनों में वो एक बात तो ज़रूर समझ गया था कि ऐसा ही Cafeteria कभी उसका एक ख्वाब हुआ करता था. शायद ऐसा Cafeteria खोलना उसका अपना Retirement Plan था. आज न जाने कैसे उसी का एक अनाम - सा या यों कहें की अनायास सा हिस्सा उसके इस चिरस्वप्न को पूरा कर रहा था. प्रवीर अपने इसी Retirement Plan को पूरा करने के लिए पिछले कई वर्षों से किताबें इकट्ठा कर रहा था. की आज विभिन्न विषयों की 3 - 4 हज़ार किताबें उसकी अपनी लाइब्रेरी में थी. तक़रीबन सभी किताबें प्रवीर ने पढ़ी हुई थी. 

***

"Hi नव्या, मैं अब वापस जा रहा हूँ जहाँ का मैं हिस्सा हूँ. हाँ मुझे तुम्हारी यह जगह बहुत  ज्यादा पसंद आयी. मैं यहाँ आया था क्योकिं कहीं न कहीं यह मेरे सपनों का मूर्त रूप है. यहाँ आ कर मुझे लगा की वर्षों से मेरे भीतर सोये से मेरे सपनों को  मुकाम मिल गया है. जाते - जाते मैं अपनी लाइब्रेरी तुम्हे भेंट करना चाहता हूँ. लोगी ना तुम... "

"क्यों नहीं सर. यह तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी. आपकी दी हुई किताबें शायद कइयों के काम आये. It would be my privilege to have your books here in my small cafeteria."

"हाँ, इतनी किताबें रखने के लिए शायद तुम्हे कुछ ज्यादा जगह चाहिए होगी. मैंने एक लिफाफा तुम्हारे टेबल पे रख छोड़ा है. शायद वो तुम्हारे इस सपने को सतरंगी करने में मदद करे."

"Thank You Sir..."

बात ख़त्म होते होते ही प्रवीर वहां से जा चुका था. 

नव्या ने अपनी टेबल पर पड़े लिफाफे को खोला तो लगा चेक पर जो Amount लिखी है वो लाइब्रेरी के एक्सटेंशन में होने वाले खर्चे से कहीं ज्यादा है. उसे समझ नहीं आ रहा था की वो अपने पास इसे रखे या वापस कर दे मिस्टर प्रवीर को. कुछ क्षण इसी उहा पोह में बिताने के बाद उसने Decide किया की वो इस चेक को बैंक में जमा नहीं करेगी... शायद किसी और से लाइब्रेरी के लिए किताबें ले लेना ही काफी है. रुपये वैसे भी नव्या की Priority List में सबसे नीचे आता है. अपने माँ - बाबा की मौत के बाद उसने अपनी देखभाल खुद ही की है. उसने खुद ही अपने घर को इस Cafeteria में convert किया था. इस जगह से इतना पैसा तो आ ही जाता है की उसकी ज़िन्दगी अच्छे से चल पाए और महीने की आखिर में कुछ पैसे और किताबें खरीदने के लिए बचा पाए. लेकिन मि. प्रवीर ने इतनी रकम और इतनी किताबें मुझे क्यों दान कर दी है? क्या हम किसी भी तरीके से एक दूसरे से जुड़े हैं या ये इंसान यूँ ही Charity कर के चला गया? समझ नहीं पा रही थी वो इन परिस्थितिओं और इसे पैदा करने वाले उस सक्स प्रवीर को. तभी उसकी Cafeteria में काम करने वाला लड़का राजू ने उसका दरवाजा खटखटाया और नव्या को सवालों के समुन्दर से बाहर निखला... कुछ और नए सवालों के थपेड़े देने के लिए. 

"दीदी, बाहर एक ट्रक खड़ा है. बोल रहा है आपके नाम से प्रवीर साहब ने कुछ किताबें भेजी हैं... चलो देखो तो... ढेर सारी किताबें हैं... ट्रक भर के..."

"अरे, इतनी जल्दी किताबें भी आ गयी. इसका मतलब मि. प्रवीर ने ये सब पहले से ही प्लान कर रखा था. पर क्यों..."

***
वापस जाते वक़्त फिर से ATR ही मिला था प्रवीर को. नीची ऊंचाई पे उड़ने वाला एयरक्राफ्ट. शायद जो जुड़ा था उसे वापस वहीं छोड़ देने के लिए समय ने उसे इस जहाज में डाला था. लेकिन वो जो जुड़ा था वो तो अरसे पहले जुड़ा था प्रवीर से. आज तो बस प्रवीर ने उसे और करीब से महसूस किया था. 
पता नहीं जो सिहरन यहाँ आते समय फ़ैल रही थी प्रवीर में वही सिहरन अब जैसे अपना रास्ता बदल चुकी थी. जैसे हर छूटते Nautical Miles के साथ प्रवीर का एक बड़ा हिस्सा पीछे छूटता जा रहा था. पता नहीं क्यों इस Archived Mail को un-archive कर के प्रवीर को उतना सुकून... उतनी शांति नहीं मिल रही थी. लगा जैसे ये Mail Archive Folder में ही रहता तो अच्छा होता. 

"देविओं और सज्जनों, कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में आपका स्वागत है... "


- अमितेश 

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