शनिवार, 8 मई 2021

नज़्म

तेरे ख़ंजर की आस लिए 

अपना सीना सजाये रखा हूँ 

जो इश्क़ किया, क्या गुनाह किया 

यूँ रोज कई मौत जिए जा रहा हूँ। 


वो सर्द सुबह की धुंध में लिपटी 

तेरी यादों को दर - रोज़ महसूस किया है 

वो तेरी एहसास से छादित गुलाबी खत 

दर रोज़ इबादात सा पढ़ा है। 


आँखों से कई बार मारा मुझे 

सांस दे कई बार जिलाया है 

आज फिर मेरा क़ातिल बन जा तू 

आज फिर, जो बची है हर जा तू। 


वो उँगलियाँ जो मेरी जुल्फों को सहलाती थी 

तेरी गेसुएं जो झुक कर मुझपर बलखाती थी 

जो नित्तांत मेरा लम्हा था, मुझे दे जा तू 

आज सा मुक्कमल मौत या एक अदद ज़िन्दगी दे जा तू।  


तुझे पा लेने की चाह में आज भी 

समा - ए - चिराग सा जल बैठा हूँ 

तेरे आने की आस लिए मैं 

तेरी राहों पे संग - ए  - मील बना बैठा हूँ। 


- अमितेश 


  

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