मंगलवार, 24 जुलाई 2012

मुकम्मल

आँखों में अश्क़
और दिल में  चुभन लिए
जीने की हर ज़द्दोज़हद में भी,
खुश हूँ मैं।

ज़िन्दगी के अर्थहीन लम्हे
और भावहीन सपनीली आंखे लिए
खुश हूँ मैं।

जब मेरी मुस्कान भी अपने होने का
वज़ूद तलाशती है मेरे चेहरे पर,
हंस कर खोखली हँसी उसपर
खुश हूँ मैं।

पैरों में आत्मविश्वास
और दिल में भय का साम्राज्य बसाये
मंज़िल पा लेने की आतुरता में
खुश हूँ मैं।

काश!
पा लूँ मैं पूरी खुशियाँ इन लम्हों में,
जब मेरी मुस्कान निर्मल चाँद सी बहे,
जब मेरे ह्रदय का आत्मविश्वास
मेरे क़दमों में दिखे।
जब दूर क्षितिज पे,
रोशनी की महीन लकीरें
मेरे अवसाद के काले बादलों को
प्रज्वलित कर दे।

इस एक उम्मीद में ही सही
पर खुश हूँ मैं।

- अमितेश 

  

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