शुक्रवार, 29 मई 2020

Travel Bag

तुम्हे पाने की लालसा में
कई ख़ाक मैंने छाने थे
तेरी सूरत दिल में बसाये
कई सफर तेरे बिन काटे थे।

तेरी वो भोली सी छवि
मेरे मस्तिष्क पे हावी थी
तुझे पाने की सोंच भी उनदिनों
अपने आप में नवाबी थी।

कई दिन मैंने यूँ ही गुजारा
बिन तेरे भटका बन बंजारा
पाया तुझे लगा जैसे
बन गया मैं इन राहों का राजा।

कई मंजिले तेरे साथ तय की
कई रातें तुझपे सर रख सोया
तू भी इतना घूम भटक कर
कभी ना अपना आपा खोया।

जब Conveyor Belt पर तुम
यूँ बलखा मटका कर आती थी
देख तुझे सब के बीच दबे
साँसे मेरी थम सी जाती थी।

उन छोटे Overhead Bean में भी
तुम बेफाख्ता Adjust हो जाती थी
कितनी ही राहों में चल कर भी
थके बिन मेरा साथ निभाती थी।

उस पूस की सर्द अहले सुबह हीं
जब तुम तैय्यार हो जाती थी
और सावन की रिमझिम में
बाप सी छाँह बन जाती थी।

मेरे सारे ख्वाब विषाद को
तुमने तह कर के रखा था
जब चाहा उन्हें तुमसे निकाल
खुद में खुश हो जाता था।

मेरे सारे कपड़ों को माँ की तरह
तुमने संभाले रखा था
सिलवट तक ना आये उनमें
ऐसे सजाये रखा था।

मेरी Travel Bag
सच में तुझसा कोई
न मेरा संगी साथी है
हम हैं पूरक एक दूजे के
जैसे दीया और बाती हैं।

आज जो तुम आलमारी के ऊपर
यूँ गुमसुम सी बैठी हो
देख के तुझको ऐसा लगता
शायद तुम मुझसे रूठी हो।

आएगा एक दिन फिर ऐसा
जब हम फिर मुस्कायेंगे
हाथों में तेरा हाथ लिए हम
दूर कहीं, घूम के आएंगे।


- अमितेश 

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