मंगलवार, 21 जुलाई 2020

फिर से ...

तुम ख़्वाब उतार लाओ उन आँखों से
हम थोड़ी मुस्कान बिखेरेंगे
तुम आ जाना आज शाम ढले
कुछ पल समेटे उन यादों के

तुम फिर हंस देना मेरी बातों पे
हम भी थोड़ा सकुचा जाएँ
फिर बैठ यूँ ही बागीचे में
कुछ वक़्त को जाया कर जाएँ

वो शाम की फिर महफ़िल बांधे
वो बातों की बतकही गढ़ें
फिर से कुछ जीवन भर डालें
साँसे भर दें फिर शामों में

तुम थोड़ा मुखड़ा गा देना
मैं कुछ मिसरा उसमें जोड़ूंगा
फिर कुछ तराने तुम गढ़ देना
कुछ तरन्नुम हम लिख डालेंगे

वो बेंच अभी तक सूना है
वो छाँह पेड़ की काली सी
आ जाओ फिर कुछ रंग भरे
उस कोने पर फुलवारी की

- अमितेश

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