शनिवार, 15 अगस्त 2009

सपने

सपने,
रेत के महलों से सपने
सागर की लहरों से सपने
सीप की मोतियों से सपने
चमकते जुगनुओं से सपने।

सपने,
टीन की छत पर पाउस से सपने
छप्परों से लटकते बर्फ से सपने
ओस से भींगे फूलों से सपने
रिस-रिस बहते झरनों से सपने।

सपने,
पल-पल बनते से सपने
हर क्षण बिखरते से सपने
कभी आसमान छुते से सपने
कभी मिट्टी में मिलते से सपने।

सपने,
कभी मुट्ठीओं में भरते से सपने
कभी मुट्ठीओं से फिसलते से सपने
कभी पलकों में पलते से सपने
कभी पलकों में मरते से सपने।
सपने!

-अमितेश

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