शनिवार, 22 अगस्त 2009

Blessings!

कहते है प्रकृति है सबसे बड़ी सहृदयी
रचित किया है जिसने सम्पूर्ण विश्व को
ये चाँद, ये तारे, ये सूरज, ये नदियाँ
सब हैं रचना इसकी
पर इस महान रचना ने
किया है अभिशप्त सबको
अभिशप्त चाँद, अभिशप्त तारे,
अभिशप्त सूरज, अभिशप्त नदियाँ।

प्रकृति की अप्रतिम रचना यह चाँद
बिखेरता है समभाव अपनी चांदनी
प्रकृति ने बनाया रात का आँगन
चाँद की चंचल अठखेलियों के लिए।
पर यही प्राकृतिक रात, काली-अंधियारी रात
एक क्रमिक अन्तराल के बाद
खा जाती है प्यारे चाँद को
छीन लेती है इसकी चमकीली चांदनी।
यह आत्मबल है अभिशप्त नन्हे चाँद का
की यह प्रकृति की रात से
करती है दो-दो हाथ, बार-बार।

प्रकृति ने बिखेरा आसमान के छौने पर
मोतियों से चमकते तारे
दिया इसे सितारों-सी चमक।
पर कर दिया दूर इतना इन्हे अपनों से
की तरसते है साथ पाने का एक-दुसरे का।
यह उष्णता है इन अभिशप्त तारों की
जो आपस में मिल न पाने पर भी
भेजते रहते हैं अपनी किरणें
एक-दुसरे के घरों में।

भेजा सूरज को प्रकृति ने
अनंत में फैलाने को उजियारा।
पर दे दी इतनी उष्णता इसे
की अभिशप्त सूरज बार-बार
डूबता है सागर में शीतलता की कामना लिए
लेकिन हर बार लौटता है बाहर
नाकामयाबी का तमगा लिए।
यह दृढ़ इच्छाशक्ति है अभिशप्त सूरज की
जो बार-बार रखता है कोशिशे जारी
शीतलता की कामना की।

प्रकृति ने बनाया जीवन-रेखा धरती की
इन चमकीली, सहिष्णु नदियों को
दे दिया इन्हे, इठलाने-बलखाने का हुनर।
पर इठलाती-बलखाती अभिशप्त नदियाँ
खो देती है अपना वजूद, असीम सागर में
सबकी तृष्णा अपनी मिठास से बुझा कर
मिलता है इन्हे खारा जल
अपनी प्यास बुझाने को।
यह हठधर्मिता है अभिशप्त नदियों की
जो यह जानकर भी की
खो देंगी अपना वजूद आगे चल कर
इठलाती-बलखाती नदियाँ चलती रहती है
बढती-रहती है, अपने जीवन की राह पर।

नहीं जानता
प्रकृति ने शापित किया है
या जीने की राह दिखायी है
अपनी इन प्राकृतिक रचनाओं को।
सहृदयी प्रकृति!

-अमितेश

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