रविवार, 18 अक्तूबर 2009

जीवन दर्शन

न कोई सरगम है, न कोई राग है
यह जीवन क्या है, एक बुझती-सी आग है।

उमंग भरे ह्रदय में दु:स्वप्नों का राज है
शुन्य में बजता एक दर्द भरा साज़ है
यह मेरी नहीं मेरी अंतरात्मा की आवाज़ है
यह जीवन क्या है, एक बुझती-सी आग है।

कहीं थोडी खुशी तो कहीं दुःख का पहाड़ है
कलियों की बगिया मैं काँटों का बहार है
गज भर हरियाली के बाद, लम्बी नि:स्तब्ध थार है
यह जीवन क्या है , एक बुझती-सी आग है।

अंहकार के अम्बर में स्वाभिमान का अस्ताचल अरुणाभ है
इंसानियत की देहरी पर मर्माहत हिमराज है
सच्चाई की नींव पर मिथ्या का ताज है
यह जीवन क्या है , एक बुझती-सी आग है।

पवित्र अनुभूतियों का छिनता स्वराज है
उन्मुक्त गगन में कहीं भय का साम्राज्य है
सांसारिकता के पुष्प पर माया का पराग है
यह जीवन क्या है , एक बुझती-सी आग है।

इस वेदना-शुन्य समाज में सिसकता मृत्युराज है
हिमालय को भी इस कठोरता पर नाज़ है
इस हृदयहीन समाज का एक नन्हा जांबाज़ है
यह जीवन क्या है , एक बुझती-सी आग है।

ना कोई सरगम है, न कोई राग है
यह जीवन क्या है, एक बुझती-सी आग है।

-अमितेश

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें