शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

रूहानी कहानी

सुना था नानी की कहानी में कभी,
आसमां के पार भी एक जहाँ बसता है।
सुनी थी पतझड़ कि दोपहरी
वसंत कि शाम और शरद कि रातें।
शरद की सर्द रातों में भी उंघते हुए
कई दफा गया था उस दुनिया में
सिरहाने रख नानी की कहानी को।

दिखा फूल वहां भी खिलते हैं
भंवरे वहां भी मिलते हैं
मुरझाते भी हैं फूल उस जहाँ के
पर वक्त को कभी इन पर
हावी होते नहीं देखा।

देखा नदियाँ वहां भी बहती हैं
झरने वहां भी गिरते हैं
सागर में मिलते भी हैं झरने और नदियाँ
पर सागर को कभी भी
साहिल के पार जाते नहीं देखा।

जाना जीवन वहां भी साँस लेती है
जिस्म वहां भी मचलते हैं
दिल वहां भी धड़कते हैं
पर भावनाओ के उफान को
दायरे तोड़ते नहीं देखा।

सुना था नानी की कहानी में कभी,
आसमां के पार भी एक जहाँ बसता है।

-अमितेश

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