रविवार, 18 अक्तूबर 2009

वसंत निवेदन

जीवन के रेतीले समुन्दर
और वक्त की कजरारी क्षितिज पर
आस लगाये बैठा हूँ
कभी तो आएगी
तुम्हारी सास्वत किरणें
कभी तो खिलेगा धुप
और रात अपनी आँचल समेटे
कभी तो देगी दस्तक
तुम्हारे आने की
मेरे अम्बर पर।

तेरी हँसी की खनक
तेरे अनचाहे सवालात
तुम्हारे गेसुओं की महक
सदियों से मरहूम मेरे कब्र पर
कभी तो लायेंगी बहार
कभी तो खिलेंगे फूल
कभी तो जलेगा दिया
कभी तो बदलेगी हवाए
मेरे मरहूम से कब्र पर।

पल में मिलने का वादा कर
अरसो इंतज़ार करवाया तुमने
कभी तो लहराएगी सरसों
कभी तो बरसेगा बरखा
कभी तो सतह होगी नम
कभी तो आएगा उफान
मेरे जीवन के रेतीले समुन्दर में।

जीवन के रेतीले समुन्दर
और वक्त की कजरारी क्षितिज पर
आस लगाये बैठा हूँ।

-अमितेश

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