रविवार, 18 अक्तूबर 2009

सामाजिक परिवर्तन

दूर से आती
जाती जीपों की
क्रमश: निम्न होती आवाज़
और क्षितिज पर छाया
धूल का गुबार
आभास दे रहा है
इस शांत वातावरण में
किसी
भयंकर त्रादसी का।

सन्नाटा छाया है
सारे गाँव में,
मूक बैठे है सब
अपने-अपने घरों में
दुबक कर।

रेता जा चुका है गला
एक ही परिवार के
नौ लोगों का
सामाजिक न्याय के नाम पर,
किसी 'अ'-सामाजिक पार्टी द्वारा।

तो क्या
मर चुकी है मनुष्यता
इस गाँव में
की मरने वालो पर
कोई वेदना भी
प्रकट नहीं कर रहा!

पर, बचा ही कौन है उनका
जो उनपर आंसू बहाए,
सभी तो होम हो चुके हैं
सामाजिक न्याय के नाम पर!

बचा है तो बस
उनका दस वर्षीय बच्चा
जो सकते में है
इस ह्रदय विदारक घटना को देख कर।

तब
घुट-घुट कर,
मर-मर कर
जवान होगा
वह दस वर्षीय बालक
और,
वह भी बनाएगा
एक 'अ'-सामाजिक पार्टी
सामाजिक न्याय के लिए
और
दानवता की पराकाष्ठा को छु कर
करेगा कत्ले-आम
सामाजिक न्याय के नाम पर।

चलता रहेगा यह अंतहीन चक्र
लुटता-बिकता रहेगा देश
इस सामाजिक न्याय के नाम पर
कटता रहेगा गला,
गिरती रहेगी लाशें,
मरती रहेगी मनुष्यता
इस सामाजिक न्याय के नाम पर!

-अमितेश

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