रविवार, 18 अक्तूबर 2009

प्रज्वलन

लगाते हैं लोग अटकलें
कहीं चिंगारी के होने की
आस्मां के छौने पर पल-पल
उठते धुएं को देख कर
धुआं ऊपर उठता है
चिंगारी की शै पर।

जलते हैं लोग पल-पल
प्रेम-जीवन की भट्टी पर
फिर करते हैं गिला वे
प्रकृति के इस निर्णय पर
धुआं ऊपर उठता है
चिंगारी की शै पर।

खाक हो जाएँ हम-तुम आज
अपने प्रेम-अगन की सेज पर
पैदा कर दे गुलाबी-पीला धुआं
अपने सुलगते मन की तेज़ पर
धुआं ऊपर उठता है
चिंगारी की शै पर।

दे दें परिभाषा नयी इसे
आओ बदल दें रंग धुएं का
पैदा कर दें लपट ऐसी
जल जाये समस्त सृष्टि जिस पर
धुआं ऊपर उठता है
चिंगारी की शै पर।

-अमितेश

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