गुरुवार, 2 जुलाई 2009

हिस्से की ज़िन्दगी

कहते है मिलती है एक ज़िन्दगी हमें
पूरी ज़िन्दगी जीने के लिए
कहते है एक मौत मिलती है हमें
पूरी मौत की मियाद तक
पर क्या एक ज़िन्दगी काफी है
पूरी ज़िन्दगी जीने के लिए!
या एक मौत मुकम्मल है
मौत को मृत्यु तक महसूस करने के लिए...
मैं नहीं मानता,
एक ज़िन्दगी में हमें
कई जिंदगियों से जुड़ना पड़ता है
तो कोई कैसे,
हिस्सों में उन जिंदगियों से जुड़ सकता है।
फिर तो ज़िन्दगी बाँटते-बाँटते हिस्सों में,
ख़ुद के लिए शायद ही बचे कोई हिस्सा
अपनी पूरी ज़िन्दगी जीने के लिए।
पता नहीं मरने के बाद भी कोई
अपनी पूरी ज़िन्दगी जी पाता है या नहीं।
शायद मरने के बाद भी
मौत को हिस्सों में बांटना पड़ता होगा।
-अमितेश

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